मुगालते में मत रहना हिन्दी पट्टी की जनता का जायका...... है
डेस्क न्यूज। कर्नाटक में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की है। दक्षिणी राज्यों में अपने पैर जमाने में लगी भाजपा पैर जमा चुके एकमात्र राज्य कर्नाटक में हार गई है। जिससे प्राणवायु विहीन होती जा रही कांग्रेस को प्राणवायु मिली है और कांग्रेस खुशियां मना रही है। मनाना भी चाहिए मगर जोश में होश न खो जाये इसका भी ध्यान रखना चाहिए। साल के अंत में हिन्दी प्रदेश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
कर्नाटक की जीत से उत्साहित नेता जिस तरह से अपनी त्वरित टिप्पणी दे रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वे बौराए हुए हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन प्रदेशों की सोच दक्षिणी प्रदेशों से भिन्न है। जहां दक्षिणी प्रदेशों में शिक्षितों का प्रतिशत बहुत ज्यादा है वहीं इन प्रदेशों में अभी भी साक्षरता का ककहरा ही सीखा जा रहा है।
दक्षिणी राज्यों में धार्मिक कट्टरता तो है मगर धार्मिक अंधविश्वास न के बराबर है वहीं इन राज्यों में धर्म के प्रति दिखावा और अंधविश्वास की भरमार है। तभी न व्यास गद्दी पर बैठकर नफरती प्रवचन देने वाले तथाकथित ठठरी के बंधे कथावाचकों की शोभायात्रा - प्रवचन पंडालों में लाखों की भीड़ जुटती है। नफरती प्रवचन देने वाले तथाकथित ठठरी के बंधे कथावाचकों को सलाखों के पीछे डालने के बजाय प्रदेश के मुख्यमंत्री तक उनके सामने दंडवत करते दिखाई देते हैं।
हिन्दी भाषी राज्यों में जनता को धर्म की अफीम चखाने के साथ ही हलवा पुडी गमछा रुपिया देकर आसानी से चुनाव जीता जाता है तभी तो चुनाव के दो - चार महीने पहले से भागवत कथा प्रवचन रामलीला भंडारा आदि का आयोजन होने लगता है। इसकी आड़ में भले ही नेता सरकारी जमीनों को हड़प लें। अवैधानिक तरीके से खनिजों का दोहन कर काली कमाई करते रहें। धर्म की आड़ लेकर झाड़ काटने वालों का विरोध करने का साहस विरोधी भी नहीं कर पाते।
ऐसा ही एक आयोजन कटनी जिले की विजयराघवगढ़ विधानसभा में विजयराघवगढ़ महोत्सव के नाम से होने जा रहा है। जिसे एक महीने तक चलना बताया जा रहा है। आयोजन शासकीय नहीं है तभी तो हरिहर तीर्थ में प्रस्तावित कार्य का पर्चा वितरित किया जा रहा है। यह पर्चा अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि इसकी आड़ में चुनाव जीतना और शासकीय जमीन पर कब्जा किये जाने की तैयारी है। हरिहर तीर्थ में प्रस्तावित अधिकांश काम ऐसे हैं जिन्हें धरातल पर अवतरित होने में वर्षों लग जायेंगे। लूट को धर्म का चोला पहनाकर जिस तरह से परोसा जा रहा है उसने विपक्षियों के विरोधी स्वरों की हालत सांप - छछूंदर की तरह करके रखी हुई है। जहां तक मीडिया की बात है तो उसने भी चंद कागजी टुकड़ों की खातिर अपनी इज्जत वेश्या से भी गई बीती बनाकर रखी हुई है।
कांग्रेस इस मुगालते में कतई नहीं रहना चाहिए कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव परिणाम कर्नाटक के चुनाव परिणाम से प्रभावित होंगे। हां प्रभावित तो होंगे मगर कर्नाटक से नहीं उत्तरप्रदेश से। जहां कर्नाटक के साथ ही नगरीय निकायों के चुनाव परिणामों की घोषणा की गई है और जहां का मुख्यमंत्री खुद सरेआम जाति - सम्प्रदाय - धर्म विशेष के प्रति हेट स्पीच देने में कोई संकोच नहीं करता है।
जिस प्रदेश में संविधान - कानून का राज नहीं बुलडोजर राज चलता है। अदालती फैसलों को दरकिनार कर सरेआम एनकाउंटर कर दिए जाते हैं। जनता का एक बड़ा तबका ऐसे लोगों की जय - जयकार करने में जरा भी शर्म महसूस नहीं करता है। मीडिया गुलामियत कर रहा है। गुलामियत नहीं करने वाले मीडिया कर्मियों पर दमनात्मक कार्रवाई की जाती है। तभी न अखबार लिख रहे हैं बुलडोजर बाबा ने सबको रौंदा।
इसलिए कमलनाथ की टिप्पणी एम पी में भी भाजपा का होगा पूर्ण सफाया, दिग्विजय सिंह ने कहा कि दक्षिण भारत में बीजेपी साफ अब सेंट्रल इंडिया की बारी - बड़बोलेपन ही लगते हैं। कांग्रेस के कुछ कद्दावर नेताओं का कहना है कि कर्नाटक में कोई सिंधिया नहीं था इसलिए वहां कांग्रेस जीत गई। वे यह भूल जाते हैं कि मध्यप्रदेश में 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस कमलनाथ के साथ में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे को आगे करके ही जीती थी ठीक उसी तरह जैसे राजस्थान में गहलोत के साथ सचिन पायलट के चेहरे को आगे कर सत्तासीन हुई थी।
मध्य प्रदेश में सिंधिया के भाजपा का दामन थामने के लिए सिंधिया से ज्यादा दोषी कांग्रेस आलाकमान ही है। सत्ता के लिए वर्षों से तरस रही कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने के बाद भी सिंधिया को न तो मुख्यमंत्री बनाया गया न ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से नवाजा गया यहां तक कि सिंधिया को खारिज कर प्रदेश के अंतिम मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह को राज्यसभा भेजा गया। जिसे प्रदेशवासियों के बीच में आज भी मिस्टर बंटाधार के नाम से जाना जाता है। कांग्रेस का आलाकमान अभी भी इस बात को स्वीकार करने से परहेज कर रहा है कि तीन पंचवर्षीय काल निकल जाने के बाद भी दिग्विजय सिंह के प्रति जनता के मन में उपजी नफरत आज भी जस की तस है। जो यही संदेश देती है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में जब तक दिग्विजय सिंह की सक्रियता रहेगी कांग्रेस के लिए भोपाल बहुत दूर रहेगी। लोगों का तो यहां तक मानना है कि दिग्विजय सिंह की सारी मशक्कत अपने लड़के को मुख्यमंत्री बनाने के लिए की जा रही है।
जहां राजघराने से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए - बचाए रखने के लिए भाजपा की गोद में बैठकर अंगूठा चूसने को हितकारी समझा वहीं आम लोगों के बीच रहने वाला सचिन पायलट अपमानित होने के बावजूद कांग्रेस में रहकर ही आलाकमान की आंखें खोलने की जद्दोजहद कर रहा है।
कर्नाटक के चुनाव परिणाम उन लोगों को शकून तथा विश्वास दिलाते हैं जिन्हें देश की सम्प्रभुता पर विश्वास है, गंगा - जमुनी तहजीब प्यारी है, कानून - संविधान पर यकीन है, धार्मिक उन्मादता से परहेज करते हैं। उनकी सोच है कि हो सकता है कि अब राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने तथा वोटों का धुव्रीकरण करने की खातिर हिन्दू - मुस्लिम, कश्मीर फाइल्स, केरल स्टोरी जैसी प्रोपोगंडात्मक फिल्में बनाने के बजाय रोटी - कपड़ा - मकान - चूल्हा चौका - रोजगार वाली "जन की बात" करेंगे न कि नफरती फुसकार छोडती "मन की बात"।
इनके साथ ही एक तबका ऐसा भी है जिसका सोचना है कि कांग्रेस की जीत तब सार्थक होगी जब बजरंग दल पर बैन तथा येदियुरप्पा को जेल होगी। वैसे जिस तरह से 2018 का चुनाव जीतने के बाद से अभी तक मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस छक्का साबित हुई है उससे कर्नाटक में कांग्रेस की मर्दानगी पर संदेह किया जाना स्वाभाविक है।
भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को करीब से जानने वालों का मानना है कि एक तीर से दो शिकार करने में माहिर भाजपा ने कर्नाटक में जानबूझकर साजिशन चुनाव हारा है। जिस तरह से भाजपा पर ईवीएम में की जाने वाली धांधलियों के आरोप लग रहे हैं तथा मतपत्रों के जरिए चुनाव कराने की मांग जोर पकड़ रही है उस पर मिट्टी डालने के लिए भाजपा ने कर्नाटक चुनाव हार कर ईवीएम को क्लीन चिट दे दी है और जब 2024 के लोकसभा चुनाव में यही हारे हुए विधायक ईवीएम के जरिए सांसद चुन दिए जायेंगे तब कोई ऊंगली उठाने वाला नहीं होगा।
कर्नाटक में फुल मिजार्टी वाली कांग्रेस को ध्यान रखना चाहिए कि भाजपाईयों ने मध्यप्रदेश में किस तरह से कांग्रेस के दोपायों को खरीद कर सरकार बनाई थी। जानकारों का मानना है कि कर्नाटक में चुनाव के पहले आरएसएस की सोची समझी साजिश के तहत ही अपने लोगों को भाजपा से इस्तीफा दिला कर कांग्रेस की सदस्यता दिलाई गई थी। जिनमें अधिकांश जीत भी गये हैं।
कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा के पास आरएसएस के साथ ही अमित शाह जैसे बिचौलिए और अंबानी - अडानी जैसे पूंजीपतियों की फौज है जो बड़ों - बड़ों को खरीदने की हैसियत रखते हैं। विधायकों को खरीदना तो मामूली बात है। क्योंकि देश के नेताओं की कौम को पाला बदलने में देर नहीं लगती। वरना सारी खुशफहमी को गलतफहमी में तब्दील होते देर नहीं लगेगी। हरियाणा इस बात की जीती - जागती नजीर है जब रातों-रात मुख्यमंत्री समेत पूरे विधायक दल ने पाला बदल लिया था।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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