तीन बार विधायक क्या बने खुद को समझ बैठे खुदा
खरी - अखरी
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
कटनी। लहजा बता रहा है दौलत नई - नई है, इसका जीता-जागता सबूत दिखाई देता है कटनी जिले की विजयराघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र के अर्थबली विधायक संजय पाठक याने संजू भैया में ! मुफलिसी के बाद मिले पैसे से पद मिला और पद मिलने से प्रतिष्ठित मिली। मगर पैसा-पद-प्रतिष्ठा के योग से गहरी नदी बनने के बजाय ये बन बैठे क्षुद्र नदी। क्षुद्र नदी के उतराने और खल के बौराने के संबंध में गोस्वामी तुलसीदास ने जो लिखा है उसकी झलक इनके कार्य व्यवहार पर देखी जा सकती है। पैसा पद प्रतिष्ठा के कारण चाहे अनचाहे लोगों की भीड़ जुटना स्वाभाविक है, जिन्हें चमचे कहा जाना ज्यादा उचित होगा, खासतौर पर राजनीति के क्षेत्र में। वही हुआ संजू के साथ तो वह उड़ चला हवा में।
आदमी जब मदहोश होकर हवा में उडता है तो वह जमीनी लोगों को कूड़ा करकट ही समझने लगता है मगर वह भूल जाता है कि कूड़े करकट की एक किरकिरी भी आंख में चली जाय तो अंधत्व भी दे सकती है। एक संजय ने अंधे धृतराष्ट्र को लाईव महाभारत सुनाई थी एक संजय खुद धृतराष्ट्र बन गया।
ऐसा ही कुछ हुआ है संजय के साथ - जो खुद को समझ बैठे खुदा। संजू ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि मेरे आगे पीछे "ऊंट बिलैया लै गई हां जू - हां जू" कह रहे पत्रकारों के बीच में से एक ऐसा पत्रकार भी निकल आयेगा जो "हां जू - हां जू" कहने से मना कर देगा । संयोग वश ऐसा ही हो गया। उसने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करते हुए एक कांग्रेसी नेता की पत्रवार्ता को प्रकाशित कर दिया। फिर क्या था सिंघम बने संजय आधी रात को ही चमचों के सहारे उठा लाये उस पत्रकार को। कर डाली लानत मनालत - दे दनादन - दे दी जान से मार डालने की धमकी - फेंक दिया सड़क पर।
यही सोच कर ना कि जब सरकार और सरकारी नुमाइंदे मेरी चौखट पर माथा टेकते ही हैं तो फिर टुटपुंजिहा मरियल सा इकलौता पत्रकार मेरा क्या बिगाड़ लेगा। बहुत हद तक हुआ भी वही। न सरकार के कान का बहरापन ठीक हुआ न सरकारी नुमाइंदों का अंधापन। पुलिस के हाथों में पक्षाघात हो गया संजय के खिलाफ एफआईआर लिखने में। पुलिस कप्तान तो एक कदम आगे बढ़ गये। खुद खड़े हो गए संजय की ढाल बनकर। बकायदा पत्रवार्ता आयोजित कर फरियादी को ही आरोपी बताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी भले खाकी में बदनुमा दाग लग गए।
संजय को इसकी कल्पना तक नहीं रही होगी कि पत्रकार अपने सम्मान की खातिर किस हद तक जा सकता है। पत्रकार ने दे दी दस्तक न्यायालय के दरवाजे। शायद संजय इस गुमान में रहा होगा कि जब सरकार और सरकारी नुमाइंदे ही मेरे साथ खड़े हैं तो न्यायालय भी मेरे साथ ही रहेगी। मगर ऐसा नहीं हो पाया।
साल - सवा साल की न्यायिक जद्दोजहद के बाद आखिरकार मरियल पत्रकार का संघर्ष रंग लाया और न्यायालय ने संजय और उसके 7 साथियों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश पारित कर दिया। कहा जा सकता है कि चींटी ने हाथी की सूंड में घुस कर हाथी को धराशायी कर दिया। इसे उस पत्रकार की जीत के रुप में देखने के बजाय तमाम पत्रकारों के स्वाभिमान और पत्रकारिता के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इस तरह का फैसला अपनी कलम को स्वार्थ पूर्ति के लिए पूंजीपतियों, सफेदपोशों आदि के दरवाजे गिरवी रखने वाले पत्रकारों के मुंह पर तमाचा पड़ने की तरह भी देखा जा सकता है।
जैसी कि संभावित चर्चा है कि विधायक संजय पाठक के खिलाफ आये न्यायालयीन फैसले का असर भारतीय जनता पार्टी पर भी पड़ेगा। वह इस तरह कि पार्टी अपराधिक छवि वाले को हाल ही में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में टिकिट देने से परहेज करे। मतलब इसकी संभावना है कि संजय पाठक को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जाय और अगर ऐसा होता है तो यह संजय के लिए बहुत बड़ा आघात होगा।
पत्रकार अपहरण कांड में संजय के साथ आरोपी बनाये जाने वाले न्यायिक निर्णय में उसका चचेरा भाई जो कटनी नगर पालिक निगम में निगमाध्यक्ष है उस पर भी पद छोड़ने का दबाव विपक्ष के साथ ही पार्टी के भीतर से भी बन सकता है।
इतना ही नहीं इस फैसले की आंच कांग्रेस तक भी पहुंच गई है। क्योंकि अपहरण कांड में संजय के साथ एक ऐसा व्यक्ति भी शामिल है जिसका बड़ा भाई कांग्रेस का पूर्व में विधायक रह चुका है तथा उसका भी नाम 2023 के चुनाव में संभावित उम्मीदवार के रूप में लिया जा रहा है।
गिनती यहां पर ही खत्म नहीं होती है । हाल ही में हुए नगरीय चुनाव में भाजपा की अधिकृत प्रत्याशी रही, जो कि पार्टी अंतर्कलह के चलते चुनाव हार गई थी, वह भी एकबार फिर विधायक की टिकिट के लिए प्रयासरत हैं। उनके पति भी पत्रकार को अगवा करने में सहभागी है तो पत्नी की टिकिट पर ग्रहण लगा सकता है। नगरीय चुनाव में भी पत्रकार अपहरण कांड की छाया छाई रही थी जिसने भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी की पराजय में अहम भूमिका निभाई थी इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
सूत्रों से मिल रही खबरों पर यदि विश्वास किया जाय तो विपक्षी पार्टियां संजय पाठक और उसके चचेरे भाई से विधायक और निगमाध्यक्ष पद से इस्तीफा मांग सकती हैं। फिलहाल न्यायालयीन फैसला स्वाभिमानी पत्रकारों को गौरवान्वित होने का एक मौका तो दे ही रहा है।
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