किसकी नजर लग गई है विजयराघवगढ़ को..?
विजयराघवगढ़ के मुस्लिम तो नहीं न ही राजा किसी गुलामियत की याद दिलाता है। तो फिर आखिर क्यों विजयराघवगढ़ के राजा की याद और उसकी विरासत को मिटाने की कोशिश की जा रही है।
राजा पहाड़ का नाम बदल कर राम राजा पहाड़ करने का प्रस्ताव और आदेश सार्वजनिक किया जाय।
अन्यथा विजयराघवगढ़ की जनता की भावनाओं के साथ किये जा रहे खिलवाड़ को बंद कर क्षमा मांगते हुए राजा पहाड़ को राजा पहाड़ ही कहा और लिखा जाए।
किसकी नजर लग गई है विजयराघवगढ़ को
विजयराघवगढ़ के अस्मिता की पहचान राजघराने की विरासत कहे जाने वाले राजा पहाड़ के आगे राम जोड़कर राम राजा पहाड़ करने की तरफदारी करते हुए कुछ लोगों द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि राम तो सबके आराध्य हैं। अगर राजा पहाड़ के आगे राम जोड़ दिया गया तो क्या गलत हो गया।
यह तो ऐसा ही है कि किसी के बाप के नाम के आगे राम जोडकर उसके बाप का नाम ही बदल दिया जाय तथा उसकी पहचान ही मिटा दी जाय और कहा जाए कि राम तो आराध्य हैं। बाप के नाम के आगे राम जोड़ने से क्या फर्क पड़ता है। यह तो विशुद्ध रूप से धार्मिक ब्लैकमेलिंग है। इस तरह की सोच का विरोध किया जाना चाहिए।
फर्क पड़ता है और बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। उसकी पहचान ही मिट जाती है।
मन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह वही विजयराघवगढ़ है जहां पर राजपरिवार ने अपनी प्रजा की जानमाल की रक्षा के खातिर अंग्रेजों से लड़कर अपने परिजनों की कुर्बानियां दी थी और आज उसी राजपरिवार की विरासत को कुछ लोगों द्वारा अपनी निजी महत्वाकांक्षी हितपूर्ति के लिए राम नाम की आड़ लेकर मिटाया जा रहा है और जनता खामोशी के साथ मिटता हुआ देख रही है।
अपनी ही बिरादरी के जाबांज कलमकारों पर भी तरस आता है कि विजयराघवगढ़ सहित जिले की लुटती हुई एतिहासिक विरासतों को देखकर भी उनकी कलम खामोश है। क्या वाकई कलम बिक गई है ! विश्वास तो नहीं होता।
मेरे बिरादर सआदत हसन मंटो के इस कथन को आत्मसात करें कि कोठे की तवायफ और एक बिका हुआ पत्रकार दोनों एक ही श्रेणी में आते हैं लेकिन इनमें तवायफ की इज्जत ज्यादा होती है
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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