क्या प्रणय सीट बचा पायेगा ? - क्या सौरभ पिछली हार को जीत में बदल पायेगा ?
शंकर और धुव्र के पास किंग मेकर बनने का सुनहरा अवसर
कटनी/ बहोरीबंद। ना - ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे_ की तर्ज पर भाजपा ने आखिरकार प्रणय पांडे को बहोरीबंद विधानसभा के चुनावी भंवर में फेंक ही दिया। प्रणय के पांच साला विधायकी कार्यकाल को लेकर क्षेत्रवासियों में खासी नाराजगी देखी जा रही थी। जिसकी खबर भोपाल से लेकर दिल्ली तक थी। पार्टी बहोरीबंद में किसी नये चेहरे को चुनावी मैदान में उतारना चाहती थी मगर टिकिट के दावेदारों में पार्टी को ऐसा कोई चेहरा नजर नहीं आया जिस पर पार्टी भरोसे के साथ दांव लगा सके। शायद इसी लिए होल्ड पर रखी गई बहोरीबंद सीट पर मजबूरन सिटिंग एमएलए प्रणय पांडे की ही उम्मीदवारी घोषित करनी पड़ी।
कांग्रेस ने पहले ही सौरभ सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। 2018 के जोड़ीदार एकबार फिर एक दूसरे के आमने - सामने हैं। जहां एक ओर प्रणय के सामने अपनी मौजूदा सीट बचाने की चुनौती है तो वहीं दूसरी ओर सौरभ को अपनी हार को जीत में बदलने का मौका पार्टी ने दिया है। इसका पता तो 3 दिसम्बर को ही चलेगा कि कौन जनता की कसौटी पर खरा उतरा।
बहोरीबंद विधानसभा का मतदाता इस बार दोनों प्रमुख पार्टियों से स्थानीय प्रत्याशी उतारने की मांग कर रहा था मगर दोनों ने मतदाताओं की भावनाओं पर पानी फेरते हुए आयातित उम्मीदवार ही उतार दिए। अब गेंद मतदाता के पाले में है कि वह किसकी भोपाल की टिकिट कन्फर्म करती है।
सबसे बड़ा खेला तो क्षेत्रीय जनाधारी नेता शंकर महतो के साथ खेला गया है या यूं कहा जाय कि खुद शंकर ने अमृत की प्रत्याशा में हलाहल गटक लिया है। एक लम्बे समय से भाजपा की टिकिट के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे शंकर को हर बार आश्वासन के बाद टरका दिया गया। इस बार भी ऐसा ही कुछ होगा इसलिए उसने फूल को छोड़कर पंजा थामा था।
खबर भी यही थी कि कांग्रेस ने शंकर को टिकिट देने के लिए आश्वस्त किया था मगर शंकर के लिए भाजपा की तरह कांग्रेस भी हरजाई निकली। ऐसा ही किस्सा विजयराघवगढ़ विधानसभा का भी है जहां टिकिट देने के कमिटमेंट के साथ धुव्र प्रताप सिंह की कांग्रेस में एंट्री कराई गई थी मगर उसे भी दरकिनार कर नीरज सिंह को टिकिट दे दी गई। इससे बेहतर तो 2018 में पदमा शुक्ला रहीं हैं।
शंकर महतो और धुव्र प्रताप सिंह के लिए तो यही कहा जा सकता है कि राजनीति में "आशा में दोऊ गये माया मिली ना राम" या यह भी कहा जा सकता है कि "घर के रहे ना घाट के"।
इसके बावजूद भी शंकर महतो और धुव्र प्रताप सिंह के पास राजनीति में अपनी वजनदारी और विश्वसनीयता को पुख्ता करने का सुनहरा मौका भी है - - किंग मेकर बनने का। अगर ये ऐसा कर पाये तो विधायक से ज्यादा प्रतिष्ठा मिलेगी इन्हें पार्टी और जनता दोनों से।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Post a Comment