कलयुगी राजनीति ने छल लिया त्रेतायुगीन बाल स्वरूप भगवान राम को !
कलयुगी राजनीति ने छल लिया त्रेतायुगीन बाल स्वरूप भगवान राम को !
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान
देते हैं भगवान को धोखा इंसा को क्या छोड़ेंगे
कटनी। जब एक मदारी बिना किसी पद-प्रतिष्ठा के डुगडुगी बजाकर जमा की गई भीड़ में अंधे को ऐनक और गंजे को कंघी बेचकर तालियां बजवा सकता है तो फिर देश के प्रधानमंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा देशवासियों की धार्मिक भावनाओं को कैस करना कौन सी बड़ी बात है, वह भी तब जब उनके द्वारा कोविड जैसी महामारी के बीच, जब देश के चारों खूंट मृत देहों के अंबार लग रहे हों तब, देशवासियों से ताली - थाली, दिया - मोमबत्ती जलवा कर अजमा लिया गया हो, तब धार्मिक अफीम के नशे में मदमस्त जनता से भगवान राम के नाम पर दीपमालाएँ जलवाना और आतिशबाजी चलवाना कौन सी बड़ी बात है । और देशभर में हुआ भी यही। जब सनातनी परम्परा में सनातनी धर्म स्तम्भों द्वारा विशेष धार्मिक कार्यों के लिए निषेधित पौष मास और आधे-अधूरे बने मंदिर में भगवान राम की नवनिर्मित प्रतिमा स्थापित कराते हुए दीपमालाएँ और आतिशबाजी जलवाई गई।
इसमें कोई शकोसुगहा नहीं है कि भारत का हर नागरिक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और उसमें बाल स्वरूप रामलला को विराजित होते देखने के लिए लालायित था, मगर सत्ता लालोपियों ने देशवासियों की धार्मिक भावनाओं के साथ कुठाराघात करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। जिससे सनातनी परम्परा में विश्वास करने वाला हर सनातनी खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है।
फौरी तौर पर सारा देश जानता है कि सर्वोच्च न्यायालय तक चले और उसके द्वारा दिए गए फैसले का मूल सार यही है कि बाबरी मस्जिद तोड़ने के बाद सालों से टेंट में विराजमान बाल स्वरूप रामलला को अपने अनुजों सहित उसी स्थान पर मंदिर निर्माण कराकर विराजित कराया जाय। भले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया फैसला अनेक विधिवेत्ताओं के मुताबिक विधि अनुरूप न होकर पक्षपाती है ! देशभर में तथाकथित धर्म के ठेकेदार संगठनों द्वारा सालों साल आन्दोलन चलाने के मूल में भी यही उद्देश्य था, न कि नई जगह नवीनतम मंदिर बनवाकर नवनिर्मित मूर्ति की स्थापना करना, जैसा कि किया गया है। इसे सीधे तौर पर टेंटवासी बाल स्वरूप रामलला और उनके अनुजों के साथ विश्वासघात और धोखाधड़ी करना ही कहा जायेगा। इसके साथ ही इसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना करने की कतार में भी खड़ा किया जा सकता है।
इतना ही नहीं, कहा जा सकता है कि सत्ता के नशे में मगरूर जिम्मेदारों ने तो सनातनी सर्वोच्च पदों पर विराजमान जगद्गुरू शंकराचार्यों द्वारा दिए गए शास्त्र सम्मत मार्गदर्शन की अवहेलना करके भी सनातन के आधार स्तम्भों और कंगूरों को ढहा दिया गया है। अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के पहले तक सनातन प्रमुख और सत्ता प्रमुख आमने-सामने जबानी तलवार भांजते नजर आये। सत्ता पक्षधारियों ने तो सनातनी स्तम्भ शंकराचार्यों की मान-प्रतिष्ठा को मटियामेट करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। शर्मनाक पहलू तो यह भी रहा कि सत्ता की गोद में झूला झूल रहे तथाकथित बाबाओं - कथावाचकों ने भी शंकराचार्यों को अपमानित करने के लिए अमर्यादित व्यक्तव्य देने में निर्लज्जता की सारी हदें तक पार कर दीं।
अयोध्या में नवीनतम मंदिर के गर्भ गृह में भले ही नवनिर्मित राम मूर्ति स्थापित कर दी गई है फिर भी यह सवाल तो मुंह बाये खड़ा ही है कि_ *सर्वोच्च न्यायालय तक जिस बाल स्वरूप रामलला ने सालों - साल (ठंडी - गर्मी - बरसात) तक टेंट में बैठे रह कर उसी जमीन पर मंदिर बनवाने के लिए मुकदमा लड़कर विजयश्री प्राप्त की है तो फिर उसी जगह पर मंदिर निर्माण कर बाल स्वरूप रामलला को अनुजों सहित विराजमान क्यों नहीं किया गया है ? जब सनातन परम्परा के शीर्ष शिखरों द्वारा पौष मास और आधे-अधूरे मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा को शास्त्र सम्मत के विपरीत बताया गया तो इसके बावजूद प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम आखिरकार क्यों किया गया ? क्या यह तथाकथित काकसों की स्वायत्त संवैधानिक संस्थानों को दंतविहीन बनाने के बाद सनातनी सर्वोच्च संस्थाओं को भी कमजोर और नेस्तनाबूद करने की सोची-समझी साजिश तो नहीं है ?
यह भी साफ तौर पर जाहिर होता है कि चंद महीने बाद होने जा रहे संभावित आम चुनाव के मद्देनजर सत्ता में वापिसी की खातिर सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा के कर्णधारों ने राम को वोटिंग मशीन में तब्दील करने के लिए सनातनी परम्पराओं को ठेंगे पर रखते हुए धार्मिक अफीम के नशे से सराबोर जनता की धार्मिक भावनाओं को उभारते हुए अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन करवाया गया है और आम चुनाव तक राम मंदिर और राम की प्राण प्रतिष्ठा की आंच को बरकरार रखे जाने की पूरी - पूरी संभावना है ताकि सत्ता सुंदरी का वरण करने के लिए चुनावी वैतरणी पार की जा सके कारण फिलहाल सत्ताधारी पार्टी के पास (2019 की तरह पुलवामा कांड के पहले तक) चुनाव जिताऊ कोई मुद्दा नहीं है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्तमान सत्ताधारियों द्वारा चटाई गई अफीम का नशा उतरने के बाद सनातनी टेंटवासी बाल स्वरूप रामलला को अनुजों सहित उनके वास्तविक जन्म स्थान पर विराजमान कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय सहित जनता के बीच जाकर अपनी खामोशी तोड़ेंगे। कारण सर्वोत्तम न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले की यथास्थिति आज भी बरकरार है !
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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