लोकतंत्र का भविष्य तय करेंगे आम चुनाव
आम चुनाव। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने आम चुनाव की तारीखों का ऐलान कर रणभेरी का शंखनाद कर दिया है। इसी के साथ ही आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई है। आम चुनाव 2019 के आम चुनाव की तरह 7 चरणों में कराये जाने का कार्यक्रम घोषित किया गया है । पहला मतदान 19 अप्रैल और अंतिम मतदान 01 जून को होगा। नतीजे 4 जून को आयेंगे। इसके बीच 26 अप्रैल, 7, 13, 20 और 26 मई को दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें और छठवें चरण का मतदान होगा। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में सातों चरणों में मतदान प्रक्रिया सम्पन्न कराई जायेगी। आम चुनाव के साथ ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव तथा विभिन्न राज्यों में 26 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी कराये जाने की तारीखें घोषित की गई है। ओडिशा में जहां चार चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे वहीं आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में एक ही चरण में वोटिंग होगी। जहां ओडिशा में 13,20, 25 मई तथा 01 जून को वोट डाले जायेंगे वहीं सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश में 19 अप्रैल तथा आंध्र प्रदेश में 13 मई को मतदान होगा। सभी के नतीजे आम चुनाव के नतीजे के साथ 04 जून को डिक्लेयर किए जाने की घोषणा की गई है। 2019 की तुलना में इस बार चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न कराने में 5 दिन ज्यादा लगेंगे। 2019 में चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई के बीच कराये गये थे। 543 लोकसभा सीटों के लिए 96.80 करोड़ वोटर अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इसमें 1.80 करोड़ युवा पहली बार बोट डालेंगे। दिव्यांग मतदाताओं की संख्या भी 80 लाख के करीब है। अस्सी बसंत देख चुके बुजुर्गों को घर पर ही वोट डालने की सुविधा दी जायेगी।
इस बार के आम चुनाव का फैसला आमतौर पर पांच बिन्दुओं पर ठहरता दिखाई देता है। पहला राम मंदिर, दूसरा उत्तर - दक्षिण, तीसरा गारंटी बनाम गारंटी, चौथा गठबंधन बनाम गठबंधन, और पांचवां महिला - युवा। 400 पार का पहाड़ पढ रही बीजेपी की उस जादूई लक्ष्य तक पहुंचने के लिए केवल और केवल नरेन्द्र मोदी पर निर्भरता है। बीजेपी तीन अक्षरी मोदी नाम के आसरे मतदाताओं को रिझाने में लग चुकी है। ये कैम्पेन है - पहली बार मतदान कर रहे वोटर से "पहला वोट मोदी को", "मोदी का परिवार" , "मोदी की गारंटी"। देखा जाए तो इस आम चुनाव में कांग्रेस का अस्तित्व भी दांव पर लगा हुआ है। यदि कांग्रेस का प्रदर्शन आशातीत नहीं रहा तो उसकी भरपाई क्षेत्रीय पार्टियां करेंगी। कांग्रेस के कमजोर होने का मतलब है क्षेत्रीय दलों की मजबूती। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भले मल्लिकार्जुन खरगे हैं मगर पार्टी का चेहरा आज भी गांधी परिवार है। खासकर राहुल गांधी। चुनाव में खराब प्रदर्शन से विपक्षी खेमे में कांग्रेस की भूमिका और पकड़ दोनों कमजोर होगी तथा राहुल गांधी पर भी सवालिया निशान लगेगा।
आम चुनाव को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का अलग - अलग मंतव्य है। जहां कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी 400 पार के जादुई आंकड़े को छू सकती है। उनके अनुसार समाज में दो तरह की घटनाओं ने सदैव ईमोशन पैदा किया है। पहली दुखांत घटना जैसे इंदिरा गांधी की हत्या, पुलवामा हत्याकांड। दूसरी वह जो समाज के बड़े तबके को प्रभावित करे जैसे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों के एक तबके का मानना है कि कांग्रेस और उसका गठबंधन बीजेपी को चुनौती देने की क्षमता रखता है। राज्यों के गठबंधन का अच्छा प्रदर्शन मोदी को तिलस्मी आंकड़े तक पहुंचने से रोक सकता है। भले ही विपक्षी एकता बिखरी हुई दिखाई दे रही है फिर भी बिहार - महाराष्ट्र की घटनाओं के बाद भी विपक्ष मजबूत दिख रहा है कर्नाटक - तेलंगाना में बीजेपी कमजोर है। मणिपुर की घटना से बीजेपी के भितरखाने दहशत है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अच्छी खासी चुनौती है। यह चुनाव मोदी बनाम राहुल भी नहीं है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा बुलाई गई प्रेसवार्ता में पत्रकारों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर पूछे गए सवाल का जबाव ईवीएम की तरफ से देते हुए राजीव कुमार ने कहा कि "अधूरी हसरतों का इल्जाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा खुद से नहीं होती खता ईवीएम की कहते हो"। ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित है। इलेक्शन कमीशन के सामने निष्पक्ष और भय मुक्त चुनाव कराने की भी चुनौती है। कैसे कर वह पहलवानों, गुंडो, बदमाशों को चुनाव में दखलंदाजी करने से रोक पायेगा। राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए बांटे जाने वाली शराब, पैसा, गिफ्ट को रोकने की चुनौती है। इसी तरह सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली अफवाह, आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकना तथा वोटिंग प्रतिशत को बढाने की चुनौतियों का सामना भी निर्वाचन आयोग को करना है।
देखना होगा कि चुनाव आयोग किस तरह से चुनाव के दौरान होने वाली हेट स्पीच पर अंकुश लगाता है खासतौर पर मोदी और सत्तापक्ष के नेताओं की जबान पर। क्योंकि इस मामले में अभी तक चुनाव आयोग का रवैया पक्षपाती ही दिखाई दिया है। आम चुनाव की तारीखों का ऐलान होने पर नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया है कि "हम चुनाव के लिए तैयार हैं। विपक्ष मुद्दा और दिशा विहीन है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के मुताबिक यह चुनाव "भारत में न्याय के द्वार खोलेगा। लोकतंत्र और संविधान को तानाशाही से बचाने का आखिरी मौका है। चुनावी नतीजे लोकतंत्र के भविष्य को तय करेंगे।"
"2024 के आम चुनाव से केवल देश की नई सरकार का गठन ही नहीं होगा बल्कि कुछ राजनीतिज्ञों के भविष्य की राजनीति का भी फैसला होगा। उध्व ठाकरे (शिवसेना यूबीटी), शरद पवार (एनसीपी शरदचंद गुट), अखिलेश यादव (एसपी), मायावती (बीएसपी), हेमंत सोरेन (जेएमएम), अरविंद केजरीवाल (आप), सुखबीर सिंह बादल (अकाली दल), तेजस्वी यादव (आरजेडी), नवीन पटनायक (बीजेडी), के. चंद्रशेखर राव (बीआरएस) सबरेंगे या बिखरेंगे यह भी तय होगा। यह इलेक्शन कई चेहरों के लिए मेक या क्रेक भी साबित होंगे। आगे का सियासी सफर तय करेंगे।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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