पूर्व विधायक ने भाजपा से दिया इस्तीफा, हरि - हर का मैनेजमेंट फेल

कटनी। फूल छाप कांग्रेसियों के दम पर मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान और विवादित बयानों की सुर्खियां बटोर रहे प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की हवाई उड़ान ने आखिरकार संगठन के एक मूल भाजपाई की बलि ले ही ली।

2018 में जनता द्वारा सत्ता के बाहर कर दिए जाने के बाद सत्ता लोलुप ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान के बीच हुई दोपायों की खरीद फरोख्त की बदौलत सत्ता हथियाने के बाद हवा में उड़ रही भारतीय जनता पार्टी ने मूल भाजपाईयों को देवतुल्य जरखरीद गुलाम बना कर रख दिया है और खुद फूल छाप कांग्रेसियों के तलवे चाटने में लग गए हैं।

लगातार आ रही सर्वे रिपोर्टिंग 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर होने का संकेत दे रही हैं। इसके बावजूद प्रदेश भाजपा नरेन्द्र मोदी की लगातार दरक रही छवि के भरोसे सत्ता में वापसी का अति आत्मविश्वास पाले बैठी है। यही कारण है कि अब उसे मूल भाजपाईयों से ज्यादा प्यार अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए भाजपा में आये कांग्रेसियों से हो चुका है।

जिसका जीता-जागता उदाहरण कटनी जिले की विजयराघवगढ़ विधानसभा में देखा जा सकता है। जहां लगातार मूल भाजपाई अपमानित होकर भी पार्टी से जुड़े हुए हैं। विजयराघवगढ़ से विधायक रहे मूल भाजपाई (जो अपनी चार पीढ़ियों से जनसंघ - भाजपा और आरएसएस से जुड़े हुए हैं) ध्रुव प्रताप सिंह ने कुछ समय पहले प्रदेश भाजपा नेतृत्व को आगाह किया था कि वह लगातार कटनी जिले के मूल भाजपाईयों को उपेक्षित कर रही है जिसकी पुष्टि मुडवारा से विधायक रहे सुकीर्ति जैन और श्रीमती अलका जैन ने भी की थी।

जिसे प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने तीनों विधायकों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से जोड़ कर देखा जबकि यह पीड़ा विधायकों की व्यक्तिगत न होकर पार्टी के देवतुल्य मूल भाजपाईयों की थी। जिस तरह से शिवराज और विष्णुदत्त ने संजय प्रेम में धृतराष्ट्री भूमिका निभाई उसी का परिणाम है धुव्र प्रताप सिंह का पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से दिया गया इस्तीफा।

जब पूर्व विधायकों ने पार्टी नेतृत्व पर उपेक्षात्मक रवैया अपनाने की बात कही थी तब जिलाध्यक्ष ने कहा था कि घर की बात है घर में निपट जायेगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा कटनी से सांसद भी हैं। उन्होंने ने भी विधायकों की पीड़ा का उपचार करने के बजाय अपने पद और प्रभाव का दम दिखाकर दबाने का प्रयास किया।

चंद रोज पहले हरि हर सहित उंची कुर्सी पर बैठे अन्य भाजपाई नेताओं का जमघट विजयराघवगढ़ विधायक द्वारा सजाये गये दरबार में था मगर पूंजीपति फूल छाप विधायक के दरबार की चाकरी कर रहे हरि हर ने धुव्र सहित किसी भी मूल भाजपाई से मुलाकात करना मुनासिब नहीं समझा।

स्वाभिमान के आगे सब बौने हैं। शायद यही कारण है कि अपने स्वाभिमान को बरकरार रखने के लिए धुव्र ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।

अपनी आदत के मुताबिक अति आत्मविश्वास के उड़नखटोले में सवार शिव विष्णु धुव्र के इस्तीफे को हल्के में लें और अगर वे ऐसा समझते हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल होगी जिसका खामियाजा भाजपा को न केवल विजयराघवगढ़ विधानसभा बल्कि कटनी जिले की बाकी तीनों विधानसभाओं के साथ ही शहडोल, रीवा, सागर, छतरपुर संभाग की विधानसभाओं पर भी उठाना पड़ेगा।

धुव्र के अगले कदम की प्रतीक्षा है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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