संदीप को इतिहास रचने का मौका देगी क्या?


 

कटनी। विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होते ही विजयराघवगढ़ से विधायक रहे ध्रुव प्रताप सिंह ने पार्टी पर उपेक्षात्मक रवैया अख्तियार करने का आरोप लगाकर जिस तरह से पार्टी में हलचल मचाई और उनके सुर में मुडवारा कटनी से विधायक रहे सुकीर्ति जैन तथा श्रीमती अलका जैन ने अपने सुर मिलाये तो उसकी धमक से भोपाल से लेकर दिल्ली तक के कान खड़े हो गए ।

चूंकि चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव कराने की तैयारियां शुरू कर दी है तो पार्टी में भी उम्मीदवारी के दावेदारों की खदबदाहट भी सुनाई देने लगी है। कटनी जिले में 4 विधानसभा सीटें हैं - मुडवारा, बडवारा, बहोरीबंद और विजयराघवगढ़। मुडवारा विधानसभा की बात करें तो पार्टी में एक अनार के लिए सौ बीमारों की कमी नहीं है। फिर भी एक नजर कुछ चेहरों पर डाली जा सकती है।

पूर्व विधायकों में सबसे पहला नाम है सुकीर्ति जैन का जो 1993 से 1998 तक विधायक रहे। भाजपा ने पहली बार कटनी में सिटिंग एमएलए सुकीर्ति को फिर से 1999 में चुनाव मैदान में उतारा था। सुकीर्ति के साथ कटनी को जिला बनाने के साथ ही नेशनल हाईवे की उपलब्धियां थी मगर कांग्रेस ने सिविल हास्पिटल के रिटायर्ड सिविल सर्जन डॉ अवधेश प्रताप सिंह (डाॅ ए पी सिंह) को मैदान में उतारा था।

प्रदेश स्तर पर इंदौर के बाद सर्वाधिक राजस्व देने के बाद भी कटनी की गिनती पिछड़ो में हुआ करती थी। हास्पिटल के हालात पूरी तरह से अविकसित व दयनीय हुआ करते थे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि डाॅ ए पी सिंह ने सिविल हास्पिटल को जन सहयोग से विकसित करने में भरपूर योगदान दिया था।

इसलिए चुनाव में आमजन के साथ ही भाजपाईयों ने भी पार्टी उम्मीदवार को वोट देने के बजाय हास्पिटल विकास के लिए किये गये कार्यों को ध्यान में रखकर डाॅ ए पी सिंह को विधायक चुन कर आभार व्यक्त किया। एक लिहाज से इसे सुकीर्ति की हार नहीं बल्कि डाॅ ए पी सिंह द्वारा शहर पर किये गये उपकार का कर्ज उतारना कह सकते हैं।

2003 में एकबार फिर कांग्रेस ने अपने सिटिंग एमएलए डाॅ ए पी सिंह को मैदान में उतारा तो भाजपा ने पूर्व महाधिवक्ता जबलपुर निवासी निर्मल चंद जैन की पुत्री भाजपा नेत्री एडवोकेट श्रीमती अलका जैन को टिकिट दी। जिसमें श्रीमती अलका जैन विजयी रहीं। मगर यहां भी अलका जैन की जीत के पीछे विधायक बनने के बाद पूरे पांच साल डॉ ए पी सिंह की एकला चलो नीत रही।

2003 में भाजपा ने सरकार बनाकर बंटाधारी नेतृत्व से प्रदेश को मुक्ति दिलाई थी। प्रदेश की बागडोर भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती को सौंपी गई और उन्होंने अपने मंत्रीमंडल में पहली बार विधायक बनी श्रीमती अलका जैन को बतौर राज्यमंत्री शामिल किया।

दुर्भाग्य से एक न्यायालयीन प्रकरण के सिलसिले में उमा भारती को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना पड़ी और उन्होंने सत्ता की खडांऊ बाबूलाल गौर को इस भरोसे सौंपी की लौटने के बाद वह भरत की माफिक बिना ना नुकुर किये मुख्यमंत्री की कुर्सी वापिस सौंप देगा। मगर ऐसा नहीं हो सका।

बाबूलाल गौर ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने से साफ इंकार कर दिया। मामला हाईकमान तक गया और वही हुआ जो कुत्ते और बिल्ली की लड़ाई में बंदर के पक्ष में होता है। छींका टूटा और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान की ताजपोशी कर दी गई।

हां तो जब बाबूलाल गौर ने कुर्सी संभाली तो अलका जैन को मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया गया इसी तरह शिवराज सिंह चौहान ने भी श्रीमती अलका जैन को अपने मंत्रीमंडल में लेने लायक नहीं समझा। यह कहना गलत नहीं होगा कि विधायक बनते ही श्रीमती जैन के  हावभाव "प्यादे से फर्जी भयो टेढो टेढो जाय" वाले हो गये थे।

2008 में भाजपा ने पहली बार मूल भाजपाईयों को दरकिनार कर कांग्रेस से आयात किए गए फूल छाप कांग्रेसी संदीप जायसवाल को अपना उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने बहुत ही कमजोर प्रत्याशी को मुकाबले में उतारा। लिहाजा संदीप को जीत मिली।

2018 में भाजपा ने जनता की नकारात्मकता के बाद भी संदीप जायसवाल को दूसरी बार टिकिट दी। कांग्रेस ने जिस केंडीडेट को टिकिट दी उसकी तुलना में जनता ने लाख वैचारिक मतभेद के बावजूद संदीप को विधायक चुन लिया। संदीप ने लगातार दूसरी बार विधायक निर्वाचित होकर समाजवादी नेता वल्लभदास अग्रवाल उर्फ लल्लू भैया (शेर-ए-कटनी) के रिकॉर्ड की बराबरी की।

2023 के विधानसभा चुनाव में संदीप जायसवाल रिकॉर्ड बनाने की कगार पर है। यदि भारतीय जनता पार्टी उसे लगातार तीसरी बार टिकिट देती है तो एक रिकॉर्ड होगा क्योंकि भाजपा ने मुडवारा कटनी में किसी को भी अभी तक तीसरी बार वह भी लगातार तीसरी बार टिकिट नहीं दी है। इसके साथ ही अगर खुदा न खास्ता संदीप ने चुनाव जीत लिया तो फिर बनने वाला रिकॉर्ड तो सोने पर सुहागा जैसा ही होगा।

वर्तमान हालातों में तो एक भी चेहरा संदीप को रिप्लेस करता हुआ नहीं दिख रहा है। संदीप के पास भाजपा संगठन के अलावा अपनी खुद की एक टीम भी है। जिस पर उसे पार्टी देवतुल्यों से ज्यादा भरोसा है।

पिछली बार की तरह इस बार भी टिकिट के लिए आगे - आगे कूदने में एक नाम चर्चा में सुनाई दे रहा है शशांक श्रीवास्तव का। जिसे बड़े अरमानों के साथ कटनी की जनता ने महापौर चुना था। मगर उसने तो आगे के सारे महापौरों को पछाड़ते हुए ऐसे कीर्तिमान स्थापित कर दिए कि जनता उनका नाम लेकर खुद को अपमानित और शर्मशार महसूस करती है।

शशांक के 6 महीनों के महापौरी कार्यकाल की समीक्षा करते हुए खरी - अखरी ने लिखा था कि "आपको तो जनता ने बड़े अरमानों के साथ महापौर चुना था लेकिन आप तो पूर्व महापौर कमला जान हिजड़ा से भी गये बीते निकले" । तब शशांक ने बड़ी हाय-तौबा मचाई थी मगर समय गुजरने के साथ ही पूरा शहर शशांक पर कमला जान का निक नेम लगाने लगा था।

भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक कहे जाने वाले समाज" सिंधी समाज" में देखें तो एक ही नाम नजर आता है पीताम्बर टोपनानी का । जिसे हाल ही में कटनी विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाकर तकरीबन दौड़ से बाहर कर दिया गया है।

इसके अलावा शहर में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो अपनी छबि की बदौलत जनता के बीच पैठ बना सके। वर्तमान में तो जिला भाजपा की कमान ऐसे हाथ में है जो खुद वार्ड मेम्बरी का चुनाव जीतने की काबिलियत नहीं रखता है। हां यह बात अलहदा है कि भाजपा का अपना एक जनाधार है जो मट्टी के माधव को भी चुनाव जितवाने की काबिलियत रखता है।

अभी चुनाव और प्रत्याशी चयन के लिए दिल्ली दूर है। तब तक इंतजार तो करना ही होगा यह देखने के लिए कि ऊंट किस करवट बैठेगा।

हां भाजपा के एक और पूर्व विधायक का जिक्र करना इसलिए छोड़ दिया गया कि वह भाजपा से निष्कासित भी है और उसकी लोकप्रियता का ग्राफ 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता तय कर चुकी है।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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