रोटी जली क्यों - घोड़ा अड़ा क्यों मछली काजू कतली से नहीं फंसती गोबर से निकला केंचुआ देखकर ही मुंह मारने आती है



कटनी से अश्वनी बडगैया अधिवक्ता, 

( स्वतंत्र पत्रकार )

खरी - आखरी। _अक्सर बुजुर्गों द्वारा ऐसा कहा जाता है कि_ जिसका बाप खड़े - खड़े मूतता है तो उसका लड़का घूम - घूम कर मूतता है _तो सच ही कहा जाता है_ *ऐसे नजारे दिखाई देना अब आम हो गए हैं और इस तरह की हरकतों से आम आदमी पर कोई फर्क भी नहीं पड़ता है बल्कि ऐसी घटनाओं को देखने - सुनने के बाद लोगों को गुटों में बैठकर चटकारों के साथ चर्चा करते हुए जरुर देखा जा सकता है।


मध्यप्रदेश के सीधी जिले में एक उच्च जाति के युवक द्वारा एक आदिवासी युवक पर पेशाब किये जाने वाली घटित घटना कोई असामान्य घटना नहीं है। ऐसी न जाने कितनी घटनाएं देश के कोने-कोने में घटती रहती हैं जिनकी भनक तक नहीं लगती है लोगों को और अगर लगती भी है तो कोई उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया तक नहीं आती है।


सीधी जिले की मूत्रात्मक घटना का वीडियो वायरल होते ही प्रदेश भर में कहर वरपा गया आखिर क्यों? कांग्रेस आलाकमान से लेकर भाजपा आलाकमान के साथ ही दूसरे राजनीतिक दलों ने एक सुर में घटना की निंदा करते हुए दोषी को कठोरतम दंड देने की मांग शुरू कर दी।


खबर आ रही है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो पीड़ित आदिवासी युवक के चरण धोकर चरणामृत पान कर माफी तक मांगी है और आरोपी युवक के घर पर बुलडोजर चलवा कर पाषाणी न्याय का नजारा भी पेश किया है।


जब इस घटना का वीडियो वायरल हुआ है तो फिर यह तय है कि घटना पूर्व नियोजित थी और कम से कम दो लोग शामिल थे एक मूतने वाला दूसरा वीडियो बनाने वाला। अगर यह कहा जाता है कि वीडियो तमाशाईयों में से किसी ने बनाकर वायरल किया है तो फिर जो कुछ भी हंगामा हो रहा है वह विशुद्ध तरीके से राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए किया जा रहा है।


प्रदेश में चौमासे बाद विधानसभा चुनाव होने को है। राजनीतिक दलों को सत्ता चाहिए। आम आदमी के रोजमर्रा की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए न तो सत्ताधारी तैयार हैं न ही सत्ताच्युत तैयार हैं। सभी दलों को भावनात्मक आग लगाने वाले मुद्दों की तलाश रहती है। जैसे मंदिर - मस्जिद, हिन्दू - मुस्लिम आदि - आदि।


सीधी का मुद्दा भी इसी की एक कड़ी बन गया है और हर राजनीतिक दल के आलाकमानी आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए छाती पीट रहे हैं। कहा जाता है कि आरोपी सत्ता पार्टी से जुड़ा हुआ है अगर यह सच है तो इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि घटना के पीछे सत्तापक्ष की सोची समझी रणनीति हो! जिसने विपक्ष को भी बैठे बिठाये बहती गंगा में हाथ धोने का मौका दे दिया है।


ऐसे अमानवीय कृत्यों को करने का हौसला भी तो आम आदमी के गलियारों से होकर गुजरता है। राजनीतिक दलों के द्वारा जब यह मान लिया जाता है कि हम कुछ भी कर आयें तो भी आम आदमी के पास कोई विकल्प नहीं है सिवाय हमें चुनने के और लोग लाइन लगा लगाकर उसे ही वोट देंगे कभी न छोड़ने के लिए।


यह पहली बार नहीं हुआ है। होता चला आ रहा है बरसों-बरस से। अंतरपट खोलिए। याद कीजिए हाल ही में घटित घटना को। जब एक सत्ता का हिस्सा बने बाप के बेटे ने सबके सामने कुछ लोगों को कार से कुचल कर मौत के घाट उतार दिया था और लोगों ने क्या किया? लोगों ने लाइन लगा लगाकर मौत के घाट उतारने वालों को ही वोट दिया। और अब युवक के चेहरे पर पेशाब ही तो किया है।


आप ऐसी गलतफहमियां मत पालिये कि इनकी सेहत पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा - कतई नहीं। क्योंकि गुलाम मानसिकता वालों को तो हिन्दू - मुस्लिम, मंदिर - मस्जिद की राजनीति में ही मजा आ रहा है। जिनके मुंह ने साम्प्रदायिकता का रसास्वादन कर लिया हो उनको तो पेशाब की दुर्गंध भी सुगंध ही लगेगी।


जब आदमी ने खुद को आदमी कहे जाने की खूबियों को खूंटियों पर टांग दिया हो तो फिर ये तो खुद को जानवर कहे जाने पर भी खुशी से लोटपोट हो जायेंगे। अब तो आदमियत का स्थान गुलामियत ने ले लिया है। ऐसे लोग सांस तो लेते हैं मगर सोच नहीं सकते। शायद उनकी सोच पर कोई पहले से ही पेशाब कर गया है।


कहा जा सकता है कि किसी के चेहरे पर पेशाब करके और मजबूत होने की हिम्मत कार से कुचले गये लोगों का हश्र देखकर आती है। दरबदर होते पहलवानों को देखकर विश्वास दृढ़ होता है। ऐसा दशाननी अहंकार तब मजबूत होता है जब उन्हें पता होता है कि हम कुछ भी कर गुजरें तो भी लोग हमारे आका को ही लाइन लगा लगाकर वोट देंगे।


कार से कुचलने वालों को, चेहरे पर पेशाब करने वालों को कोसना तो ठीक है मगर उससे ज्यादा जरूरी है ऐसे लोगों के पीछे खड़ी ताकत से दूरी बनाने की। देश में एक सिस्टम सा बन गया है। जो आमजन को कभी कुचलता है, कभी पीटता है, कभी लिंच करता है, कभी दुराचार करता है, कभी नंगा करके दौड़ाता है तो कभी पेशाब करता है।


आम आदमी को इस सिस्टम की हिम्मत के खिलाफ हिम्मत के साथ खड़ होना होगा, गुलामियत के खिलाफ आजादी के साथ खड़ा होना होगा वरना इसी तरह कोई भी आम जनता के सपनों, भविष्य, योजनाओं, खुली आजाद सांसों पर पेशाब करके निकल जायेगा।


आमजन को अपनी और अपनी आने वाली पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए जरूरी है ऐसी ताकतों के अहंकार तो तोड़ने के लिए सत्ता पलट करना वरना कहा जा सकता है कि आने वाले दिन आज से ज्यादा भयावह होंगे।

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