इन जगहों पर भी पाया जाता है प्रवेश शुक्ला टाईप का टुच्चा नेता
बस इसी खबर को यूट्यूब न्यूज चैनल जन आवाज में बिना काटे छांटे चलाया गया था। इसी खबर से बोखला कर संजय पाठक ने जन आवाज के संपादक को अपने पाले हुए भाजपा गुंडों गायत्री नगर निवासी विनय दीक्षित, मानसरोवर कॉलोनी का रहने वाला अनुज तिवारी और दो अन्य मवालियों से अपहरण करा बंधक बना के घंटो मारपीट की गई थी। आपको बता दे की कटनी का तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुनील जैन तो पाठक के तलवे चाटने का काम करता था। और पुलिस अधीक्षक जैन की इस करतूत को कटनी में आकर मीडिया के सामने नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह खुलेआम कहते हुए नजर आए थे। क्योंकि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जो वर्तमान में डीआईजी के पद का मजा ले रहे है, जन आवाज के संपादक की FIR करना तो दूर की बात पाठक के प्रभाव के आगे आवेदन तक लेने से मना कर दिया था। उल्टा पीड़ित पर कोतवाली थानेदार अजय बहादुर सिंह और आजाक थाने में फर्जी मुकदमा कायम कर सुनील जैन पुलिस अधीक्षक से डीआईजी बन गए?
सीएम हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। आप खुद सोचिए प्रवेश शुक्ला और संजय पाठक में क्या कोई फर्क नजर आता है। संजय पाठक पर न तो आज तक पुलिस FIR दर्ज की और न ही मुख्यमंत्री सहायता केंद्र में की गई शिकायत का कोई परिणाम सामने आया। उल्टा अब पुलिस शिकायत बंद करवाने का आये दिन दबाव बनाती रहती है। इसलिए हम ये कह सकते है कि प्रवेश शुक्ला टाईप के टुच्चे नेता सीधी बस में नहीं कटनी में भी पाए जाते है।
अब बात करते है सीधी मूत्रकाण्ड की तो सीधी पेशाब कांड ने सिर्फ सीधी जिला को शर्मसार नहीं किया। अपितु एक जरा से छुटभैया नेता के कारण पूरे प्रदेश को शर्मसार होना पड़ा। 18 साल से प्रदेश में काबिज भारतीय जनता पार्टी की भले ही इस शर्मनाक हरकत से जड़े न हिली हो, लेकिन इस मवाली नेता की टुच्चई हरकत ने पूरे प्रदेश की आवाम को झकझोर कर रख दिया। सबसे बड़ी बात ये है कि लोग कह रहे है कि ये राक्षस शराब के नशे में था। क्या वाकई शराब इंसान को हैवान बना देती है.? यदि ऐसा है तो फिर शराब पीने वाले अपना घर, परिवार, नाते, रिश्तेदार को कैसे पहचान लेते है?
भाजपा नेता ने दलित आदिवासी के साथ जो कृत्य किया है क्या वो शराब के नशे में किया है। यदि शराब पीने के बाद ऐसा घ्रणित कृत्य किया है और होता है तो फिर शराब पीने वाले मैला क्यों नहीं खाते.? लेकिन सच्चाई तो ये है कि सीधी का टुच्चा नेता प्रवेश शुक्ला शराब के नशे में पेशाब कांड को अंजाम नहीं दिया। बल्कि सीधी के स्थानीय विधायक की सरपरस्ती में पलने और सत्ता के मद में चूर होने के कारण मानसिक रूप से कमजोर दलित आदिवासी युवक के मुँह में पेशाब करके ये बता दिया कि हमारे सामने किसी की कोई ओकात नहीं है। यदि "नशा शराब में होता तो नाचती बोतल" लेकिन ऐसा कुछ होता न तो कभी दिखाई दिया और न ही सुनाई दिया। दरसल स्थानीय विधायक का संरक्षण, ऊपर से सूबे की सत्ता और तो और दरिंदगी की हदें पार करने वाला भी सत्ताधीशों का प्यादा। फिर भला सत्ता के आगे शराब का नशा क्या मायने रखता है। और फिर तब जब अत्याचार करने वाला उच्च जाति से ताल्लुक रखता हो और अत्याचार सहने वाला एक गरीब परिवार का दलित आदिवासी समाज का हो तो उच्चकोटि वाला तो यही सोचेगा और चाहेगा भी की कमजोर वर्ग निचला, कुचला दबा रहे।
अब जब मामला पूरे प्रदेश में मच गया तो मजबूरी बनती है कार्रवाई करने की। सूबे के मुखिया ने भी सीधी पुलिस को निर्देश जारी कर दिए रासुका समेत विभिन्न धाराओं के तहत कार्रवाई करने की। अब स्थानीय भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला भले ही ये कहने से बच रहे हो कि दलित पर पेशाब करने वाला हैवान प्रवेश शुक्ला से उनके कोई संबंध नहीं है।
तो क्या प्रवेश शुक्ला अपने विधायक प्रतिनिधि होने के पोस्टर रातों रात छपवा दिया।
सोशल मीडिया में भी विधायक केदारनाथ के साथ प्रवेश की जादुई तरीके से पुरानी फोटो दिखाई देने लगी। प्रवेश के पिता क्या झूठ बोल रहे है कि उनका बेटा विधायक का प्रतिनिधि था और अब भी है। हां ये तो अक्सर होता है कि जब बड़े नेता की गुल्ली फसती है तो छुटभैया नेता को बली का बकरा बनना ही पड़ता है। यही कारण नजर आ रहा है जब बात विधायक की आई तो अपनी बचाने के लिए आरोपी का आरोप सामने आते और सूबे की मुखिया को एक्शन मोड़ में देख पेशाब कांडकर्ता को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया।
आरोपी के घर में बुलडोजर चलाने की कार्रवाई भी बड़ी सोची समझी प्लानिंग के तहत की गई। सूबे के मालिक का आदेश था तो भला बजाने से कैसे इंकार कर सकते थे। एक तरफ विधायक तो दूसरी तरफ मुखिया यानि एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई। दोनों की बात रखने और खुश करने के लिए जैसे तैसे आरोपी के घर बुलडोजर रूपी यमराज को साथ लेकर पुलिस पहुंची। लेकिन पुलिस ने भी यमराज के कान में धीरे से फुसफुसाते हुए कह दिया विधायक का आदमी है, उसने भी बात मानते हुए दो पंजे मारकर वापस आ गया। स्थानीय प्रशासन ने कार्रवाई को अंजाम भी दे दिया। न तो विधायक दुखी हुए और न ही मुखिया सब का काम अपने - अपने हिसाब से पूरा हो गया। रही बात जनता की तो समय के साथ अक्सर भूल जाया करती है। इस पेशाब कांड का भी आगे चलकर यही होने वाला है। विपक्ष का क्या वो भी थोड़ा सा चीखेगी, चिल्लायेगी और फिर एक दिन हसीना मान जाएगी की तर्ज पर शांत हो जाएगी। गरीब दलित भी दबा हुआ है, और ज्यादा उड़ा तो हो सकता है उड़ा भी दिया जाए? क्योंकि सत्ता का पवार बोलता है?
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