चार दिन के SP क्या बने खुद को समझ बैठे खुदा

कटनी। पुलिस कप्तान अभिजीत कुमार रंजन चंद दिनों की छुट्टियों में क्या गए एसपी का प्रभार मिलते ही एएसपी मनोज केड़िया खुद को खुदा समझ बैठे.? अपने ही मातहत को इतना टॉर्चर किया कि उसे आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

आपको बता दे कि कटनी के पुलिस लाईन में पदस्थ आदिवासी हवलदार अरविंद कुमार मरावी आखिर एडिशनल एस पी मनोज केडिया के बंगले में ड्यूटी करने से क्यों डर रहा था। पांच दिन पहले मरावी की ड्यूटी पुलिस लाईन से एडिशनल एस पी के बंगले में लगाये जाने और ड्यूटी करने से मना करने के पीछे कहीं कोई गंभीर मानसिक यातनाओं का शिकार तो नहीं हो रहा था.? कहीं फिल्मी तर्ज के हिसाब से एडिशनल एस पी ने विलन वाली भूमिका तो नहीं निभाई जिसकी वजह हवलदार अरविंद कुमार मरावी केड़िया के बंगले में ड्यूटी करने से कतरा रहा था। आखिर आरआई मोहतरमा मरावी के मना करने के बावजूद जबरिया उसकी ड्यूटी मनोज केड़िया के ही बंगले में लगाने के पीछे कोई गहरा राज तो नहीं दबा था। 

आखिर अरविंद मरावी कुछ दिन केड़िया के बंगले में तैनात होने पर ऐसा क्या देख लिया कि बंगले में ड्यूटी करने से बचने के लिए गरुवार की रात आत्महत्या जैसा संगीन कदम उठाना पड़ा। कोई तो राज दफन है जो खुलकर हवलदार मरावी बता नहीं पा रहा।

यदि बात एडिशनल एसपी के बर्ताव और स्वभाव की करें तो इनका बात करने के लहजे के सामने डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DGP) भी कम ही नजर आएंगे। लेकिन ये तो अपने आगे किसी को कुछ समझना अपनी तौहीन समझते हैं? रक्षित निरीक्षक के द्वारा जबरिया अरविंद मरावी को एडिशनल एसपी के बंगले में तैनात करना और एडिशनल के द्वारा हवलदार मरावी को टॉर्चर करना तरह - तरह के सवालों को जन्म दे रहा है। इस पूरे मामले की जांच यदि खुद पुलिस कप्तान अभिजीत कुमार रंजन ईमानदारी के साथ अपने स्तर से करते हैं तो सम्भवतः सारी सच्चाई सामने आ सकती है। बस जरूरत है पूरे मामले की निष्पक्ष जाँच की वो भी बिना किसी दवाब के।

हालांकि मनोज केड़िया पर हवलदार अरविंद मरावी के द्वारा लगाए गए प्रताड़ना के अरोपों की जांच कटनी के पुलिस कप्तान भी करते है तो जांच बाधित हो सकती है। कारण साफ है इस बंगले वाले के तार दूसरे बंगले वाले से जुड़े होने के कारण जांच प्रभावित होना लाजमी है। क्योंकि दूसरा बंगले वाले को भी अहंकार ने जकड़ रखा है। मनोज केड़िया तो जहां अपने आप को डीजीपी से कम नहीं समझते तो वहीं बंगले वाला भी अपने आप को सीएम से कहां कम समझते हैं। एक अदने से हवलदार को एडिशनल एसपी और रक्षित निरीक्षक के द्वारा प्रताड़ित करने से जहर खाकर आत्महत्या करने की जांच में कुछ निकले या न निकले हवलदार जरूर दोषी साबित कर दिया जाएगा। 

खैर वो तो गनीमत थी कि हवलदार को समय रहते निजी अस्पताल एमजीएम में भर्ती कर इलाह मुहैया हो गया नहीं तो जैसे पूर्व में कुठला थाने में तैनात हवलदार सत्येंद्र शुक्ला की सांसे फांसी के फंदे में थम गई थी उसी तरह हवलदार मरावी जहर के सेवन करने से तड़प - तड़पकर मौत के गाल में समा गया होता। और पुलिस रिकॉर्ड में शराब के अधिक सेवन कर मौत होने की कायमी कर फाईल सड़ती रहती। आपको बताते चलें कि कुछ पुलिस कर्मी जिसमें एक चिता स्कॉट का था, कहते हुए सुना गया कि एडिशनल एसपी मनोज केड़िया से हवलदार अरविंद मरावी ही नहीं मैं और मेरे जैसे कई पुलिस कर्मी प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं। मतलब साफ है यदि एएसपी केड़िया का तबादला जल्द नहीं हुआ तो फिर इसी तरह के परिणाम सामने आने से इंकार नहीं किया जा सकता.?

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