कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक

स्वतंत्र पत्रकार, अधिवक्ता अश्वनी बड़गैया

संपादकीय: नया संसद भवन, उसमें आयोजित पहला विशेष सत्र वाकई ऐतिहासिक होकर ऐसा अमिट निशान छोड़ गया जो मिटाये नहीं मिटेगा। विशेष सत्र में भले ही अनौपचारिकता वश ही सही महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित किया जा सकता था जो नहीं किया गया। कल तक महिला आरक्षण को कांग्रेस का पाप कहने वाली पार्टी ने उसी महिला आरक्षण बिल को नये नाम के कलेवर में लपेट कर पेश किया और उस पर बहस की शुरुआत की अपनी कलीग को "नगर वधू" कहने वाले सांसद ने। इसी कड़ी में चार चांद लगाये दिल्ली से भाजपाई सांसद ने बसपा सांसद के सम्मान में असंसदीय शब्दों का उच्चारण कर और उसके फूहड़ शब्दों पर मुहर लगाई भाजपा के दो सीनियर लीडर व पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों ने अपनी खीसें निपोर कर। निजाम ने वही किया जो वे करते आये हैं हाथरस, उन्नाव, कठुआ, बिलकिस बानो, महिला पहलवानों, मणिपुर की घटनाओं पर अपने ओठों को सिलकर। हद तो तब हो गई जब लोकसभा अध्यक्ष ने जो कि पुराने संसद भवन में बिना संगोल विपक्षी सांसदों को निष्कासित करने में जरा भी संकोच नहीं करते रहे वे नवीन संसद भवन में संगोल को हाथ में लिए भाजपाई सांसद को निलंबित करने के बजाय केवल चेतावनी देते हुए पक्षपात करते नजर आये।

राम मंदिर, पुलवामा, सर्जिकल स्ट्राईक आदि से जो राजनीतिक लाभ मिलना था मिल गया। 2014 और 2019 में फेंके गये जुमलों की हकीकत जनता समझ चुकी है। 2024 की नैया को पार लगाने के लिए अब मंदिर - मस्जिद, हिन्दू - मुस्लिम, हिन्दू खतरे में है जैसे भावनात्मक खेल अपना अस्तित्व खो चुके हैं। इसलिए 2024 के लिए कुछ नया चाहिए तो पहले लाया गया "सनातन" मगर संदेह है कि यह नैया पार लगा देगा इसलिए आधी आबादी को साधने के लिए लाया गया है महिला आरक्षण विधेयक "नारी शक्ति वंदन विधेयक" के नाम से। यह कब से लागू होगा इसकी कोई निश्चित तारीख नहीं बताई गई हां इसकी समाप्ति के साल जरूर तय कर दिए गए हैं।

वर्तमान सरकार द्वारा पेश किये गये बिल पर यह कहा जा सकता है कि यह कागज के टुकड़े पर दिए जाने वाला ऐसा काल्पनिक आरक्षण है मानो कोई नटवर लाल बिल्डिंग का ख्वाब दिखा कर नक्शे पर ही बिल्डिंग बेच दे। भारतीय जनता पार्टी अब अटल, अडवाणी, मुरली, सुषमा की पार्टी तो है नहीं अब तो यह पार्टी है मोदी, शाह, ईरानी की जिसे शार्टकट पसंद है क्योंकि "कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक"।

इसलिए महिलाओं के चूल्हे - चौके पर छाये संकटों की बात छोड़कर, महिलाओं की अस्मिता पर हो रहे हमलों पर आंख बंद कर "नारी शक्ति वंदन" की बात की जा रही है और वह भी उनके द्वारा जिनके मुखिया ने हाथरस, उन्नाव, कठुआ, मणिपुर की नारियों की खुलेआम इज्जत तार - तार किये जाने पर एक शब्द तक नहीं बोला, जिसके मुंह से यौन शोषित पहलवान बच्चियों के लिए सहानुभूति के बोल तक नहीं निकले, जिसमें बिलकिस बानो केस के अपराधियों को छोड़े जाने पर किये गये अभिनंदन की निंदा करने तक का साहस तक नहीं था। हां वह पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न राजीव गांधी की पत्नी को कांग्रेस की विधवा कहने में जरा भी संकोच नहीं करता। वही आधी आबादी में से एक को उत्पीडित छोड़कर बाकी का कल्याण करने की ललक दिखा रहा है। क्या उस एक का उत्पीड़न निजाम की नजर में आधी आबादी के उत्पीड़न का हिस्सा नहीं है ? वैसे इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए क्योंकि जिसके आशाराम, राम रहीम, कुलदीप, बृजभूषण, निशिकांत, विधूड़ी के साथ मित्रवत संबंध हों !

जिस महिला आरक्षण विधेयक को कांग्रेस का पाप, सोनिया गांधी का ऐजेंडा कहा जाता रहा हो उसी महिला आरक्षण बिल को आनन-फानन संसद में पेश करने के पीछे 2024 के आम चुनाव पर वापसी करने के साथ ही कोई न कोई दूसरी मजबूरी भी है मोदी सरकार की। जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। संभवतः वह है अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल हो रही देश की छबि। कहा जा सकता है कि हाथरस से लेकर महिला पहलवानों और मणिपुर में हुई महिलाओं के साथ घटित घटनाओं और उस पर निजाम के मौन ने विश्व स्तर पर देश के चेहरे कालिख ही पोती है। महिलाओं के प्रति हो रहे यौनाचार से देश को रेप कंट्री तक कहा जाने लगा है ! शायद यही कारण है मोदी सरकार का आनन-फानन में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया जाना।

संसद में महिला सांसदों ने जिस तरह महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए अपनी बात रखी उसने भी देशवासियों को झकझोर कर रख दिया है।_ *जिस देश में महिलाओं को स्तन ढंकने के लिए टैक्स देना पड़ता हो, दलित महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित हो, मां, बहन, बेटियां यहां तक कि 2 महीने की नवजात भी सुरक्षित न हो उस देश को प्रोग्रेसिव कहने का कोई हक नहीं है। जहां तक महिलाओं का सम्मान के साथ जीने का सवाल है उसमें सरकार की कोई भागीदारी नहीं है सिवाय चेष्टा के। स्वच्छ भारत अभियान की नग्न सच्चाई यही है कि यहां जवान बच्चियों को प्रसाधन के लिए खेत बताया जाता है। देश के निजाम और उसके सिपहसलार पर लड़की की जासूसी कराये जाने का इल्ज़ाम लगाता बयान देश की सबसे बड़ी अदालत में आईएएस अधिकारी लगा रहा हो! उनकी नज़र में नारी का सम्मान कितना होगा सहज ही समझा जा सकता है।

केवल नारी शक्ति वंदन नाम रखने से नारियों का सम्मान बढ़ने वाला नहीं है इसके लिए चेहरे के साथ ही चाल और चरित्र को भी दाग मुक्त रखना होगा। नारी शक्ति वंदन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने पास कर दिया है। जिसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां अपनी पीठ ठोंक रही हैं। अभी तो राज्य विधानसभाओं की भी औपचारिकताएं पूरी होनी है। विधेयक में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान न होना भी विवाद पैदा करेगा। जिसके सुर भी सुनाई देने लगे हैं। वैसे जहां कांग्रेस ने इसे तत्काल लागू करने की मांग की है वहीं भाजपाई गठबंधन सरकार इसे जनगणना और उसके बाद होने वाले परिसीमन के बाद ही अस्तित्व में आने की बात कह रही है।

जिसका खुलासा भी भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे ने आर्टिकल 81(3) और 82 का हवाला देते हुए किया है कि यदि सब कुछ सामान्य रहा तो यह बिल 2039 तक फोर्स में आ सकता है। मतलब 15 साल बाद और जब बिल की उम्र ही 15 साल तय कर दी गई है तब उसकी भ्रुण हत्या होना भी तय है। अर्थात "ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी"। फिर 15 साल बाद देश की राजनीतिक परिस्थितियां क्या और कैसी होंगी कौन जानता है ? ये अलग बात है कि निजामे सदर आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा में जी रहे हैं। फिर भी जनता जनार्दन को तो अपने दिमाग की खिड़की और दरवाजे खुले रखने होंगे ताकि ताजे विचारों का आना - जाना होता रहे।

_Nishikant Dubey confirms our worst fears_

WOMEN RESERVATION TO SHIFT BEYOND 2034 LOK SABHA ELECTION, IF LS ELECTION HAPPEN AS PER NORMAL SCHEDULE. WOMEN RESERVATION WILL COME IN 2039

NISHIKANT DUBEY LINKS THE DELIMITATION FOR WOMEN RESERVATION TO ARTICLE 81(3) AND 82

AS PER THESE ARTICLES THE DELIMITATION WILL HAPPEN AFTER 2031 CENSUS

                     करें घोषणा

यदि भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दल वाकई महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए मानसा - वाचा - कर्मणा रूप से तैयार हैं तो संवैधानिक प्रक्रिया जब पूर्ण होगी तब होगी 2023 के आखीर में होने जा रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा 2024 में होने वाले आम चुनाव में मौजूदा सीटों में से ही 33 फीसदी महिलाओं को टिकिट देवें।

नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश कर आत्ममुग्धता के उड़न खटोले में सवार मोदी और उनकी पार्टी भाजपा में क्या इस बात की घोषणा करने का साहस है कि 2024 के आम चुनाव में अगर भाजपा सत्ता में आई तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर महिला ही ताजपोशी होगी ?

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