कटनी। भाजपा के अरबपति विधायक जो कटनी जिला विजयराघवगढ़ विधानसभा के विधायक हैं, नाम है संजय पाठक। हालांकि ये नाम से प्रदेश तो क्या पूरा देश परिचित होता जा रहा है। उनकी कलंकित कर देने वाली करतूत के चलते। जिस तरह की हरकत संजय पाठक ने मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय के जस्टिस के साथ की है, एक कहावत संजय पर पूरी तरह फिट बैठती है। और वो कहावत है "आ बैल मुझे मार" साथ ही एक गाना याद आ गया और वो गाना है "पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, बेटा हमारा ऐसा काम करेगा" इसी सोच के साथ हर पिता की ये दिली ख्वाहिश होती है कि उसका बेटा ऐसा कुछ काम करे जिससे उसके पिता का नाम रोशन हो सके।
कुछ इसी तरह की तमन्ना स्वर्गीय सत्येंद्र पाठक ने भी अपने इकलौते बेटे से की रही होगी। जिन्होंने दुनिया से रुखसत होने से पहले ही विरासत में राजनीति से लेकर व्यापार तक सब कुछ अपने इकलौते वारिश को ये सोचकर सौंप कर चले गए कि मेरा लायक बेटा मेरे द्वारा दी गई तमाम चीजों की हिफाजत करेगा। मेरे जाने के बाद मेरा नाम भी पूरी दुनिया में रोशन करेगा। लेकिन स्वर्गीय श्री सत्येंद्र पाठक जी को शायद ये नहीं पता था कि जिन हाथों में सोने की कलम देकर जा रहे हैं, उस बेटे को उस कलम से क्या लिखना है। इस बात का कितना ज्ञान है। आज संजय की करतूत ने अपने ही पूज्य पिता स्वर्गीय श्री सत्येंद्र पाठक जी का नाम कलंकित करते हुए परिवार को बड़ी मुसीबत में डाल दिया है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की आज शायद स्वर्गीय श्री सत्येंद्र पाठक जी की आत्मा दुखी हो रही होगी कि उन्होंने जो नाम इज्जत और शोहरत कमाई थी आज उनके बेटे संजय पाठक ने सब कुछ बरबाद तो किया, साथ ही परिवार को भी मुसीबत में डाल दिया।
अहंकार बस संजय पाठक ने देवी समान अपनी ही माता के लिए बड़ी परेशानी लेकर तोहफे में दे डाली। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक संजय सत्येंद्र पाठक ने अपने नाम के साथ भले ही अपने पिता का नाम जोड़ लिया हो। लेकिन जिस तरह का कांड संजय लंबे समय से करता चला आ रहा है उससे क्या लगता है "स्वर्गवासी पिता स्वर्ग में बैठकर खुश हो रहे होगें" इसमें कोई शक नहीं कि पिता द्वारा विरासत में मिली राजनीति से लेकर व्यापार को संजय ने उस ऊंचाई के शिखर पर लाकर खड़ा कर दिया जिसे करना तो दूर की बात सोचना भी मुश्किल है। लेकिन संजय ने जिस रास्ते अपने व्यापार को चाहे वो खनन हो या फिर जमीन से जुड़ा कारोबार रहा हो। सब कुछ गैर कानूनी तरीके से ही व्यापार की बुनियाद खड़ी की है। जो आज सूखी रेत की माफिक भरभरा कर गिरती हुई नजर आ रही है।
आप इस तश्वीर से संजय पाठक की कामयाबी का आंकलन कर सकते हैं। क्योंकि आईना और तश्वीर इंसान की आत्मा का हाल बयां कर देती है।
संजय ने कामयाबी की इमारत किसकी छाती पर चढ़कर बुलन्दियों को छुआ है इसका प्रमाण वो गरीब आदिवासी लोग हैं जिनको संजय पाठक इस्तेमाल कर करोड़ो की जमीन खरीदकर मखमल के बिस्तर में चैन की नींद सो रहा था। लेकिन कहते हैं जिस दिन मजलूम, लाचार, बेबस और गरीब की हाय आत्मा से निकलती है वो सीधे परमात्मा तक पहुँच ही जाती है। और फिर शुरू होता है कुदरत का इंसाफ। क्योंकि उसकी अदालत में न तो रिश्वत चलती है न ही कोई दलीलें काम आती है। जिसका जीता जागता नमूना ऊपर वाले ने इंसानी अदालत में ही दिखाना शुरू कर दिया है। आपको बताने की जरूरत तो नहीं है फिर भी याद दिला दें की 1 सितम्बर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक्सिस माईनिंग को लेकर सुनवाई होने वाली थी। इसी बीच भरी अदालत में भाजपा विधायक संजय पाठक अपने रसूख का जलवा दिखाने के लिए उसी कोर्ट के जज को फोन कर अप्रोच लगाने लगा। जिसमें संजय पाठक की मां निर्मला पाठक एवं उसका बेटा यस पाठक के एक्सिस माईनिंग की सुनवाई होने वाली थी। सुनवाई हो पाती इससे पहले संजय ने जज श्री विशाल मिश्रा को फोन पर केस को बाधित करने की कोशिश की गई। जिससे जज श्री मिश्रा नाराज हो गए। साथ ही केस को छोड़ने का निर्देश देते हुए किसी और पीठ में सुनवाई करने केस को मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया गया।
संजय की इस करतूत ने न्याय व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया। जिसके बाद चारो तरफ केवल यही चर्चा चल रही है की क्या संजय पाठक का ये अपराध संजय को जेल भेज सकता है। संजय पाठक के कारण आज भाजपा सरकार की भी किरकिरी हो रही है की भारतीय जनता पार्टी में ऐसे विधायक भी हैं जो न्याय पालिका और न्यायमूर्ति को खेल समझते हैं। जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं। आगे क्या होगा ये तो भविष्य के गर्त में छिपा है जो जल्द ही निकलकर सामने आ ही जायेगा।
सबसे बडी बात ये है की संजय को बरबाद करने के पीछे कोई और नहीं बल्कि उसी के इर्द गिर्द घूमने और चाटुकार टाईप के लोग हैं। जो गलत को भी सही दिखा कर संजय पाठक के सामने वाह - वाही लूटने में लगे रहते हैं। ऐसे लोग चम्मचगिरी कर सिर्फ अपना हित साधने में लगे रहते हैं। इतिहास गवाह है चम्मच जिस बर्तन के अंदर जाता है उसे खाली करके ही आता है। यही संजय पाठक के साथ हो रहा है। क्योंकि अब संजय के पास ईमानदार सलाहकार नहीं बचे। जो बचे हैं वो केवल और केवल चाटुकार है। नहीं तो आज संजय पाठक की दिशा और दशा की दुर्दशा न होती। कुछ तो कर्मो का भी हिसाब है जो यहीं रहकर देना ही पड़ता है। वो फिर चाहे राजा हो या रंक।
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रवि कुमार गुप्ता : संपादक ( जन आवाज ) |