खरी-अखरी(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) भेज दीजिए भागवत जी अपने स्वयंसेवकों को बार्डर पर देश भी तो देखे उनकी बहादुरी

हिन्दू मुस्लिम की राजनीति ही मोदी का फैक्ट प्रोजेक्ट इसके बिना राजनीति 24 घंटे भी जिंदा नहीं रह सकती 

 

अपनी पैदाइश की शताब्दी मना रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने पहली बार ऐसा संयोग आया है कि वह अपनी कथनी और करनी को समरूप साकार कर सकता है। मोहन भागवत ने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के स्वयंसेवक किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं और अब आप कह रहे हैं कि देश शक्तिशाली है यह दिखाने का समय आ गया है तो क्यों नहीं आप ही देश की अगुआई करने के लिए आगे आयें और भेज दीजिए अपने सैनिकों (सवयंसेवकों) को सरहद पर जिससे देश को भी तो पता चले कि आरएसएस ने 100 साल में कैसे लड़ाकू तैयार किए हैं ।

11 सालों में शायद पहली बार देश के तीन अलग - अलग क्षेत्रों की तीन महत्वपूर्ण हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आईना दिखाते हुए उनकी राजनीति और कार्यशैली को एक्सपोज कर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहलगाम घटना को लेकर एकबार फिर वही रवैया अख्तियार किया जो उन्होंने मणिपुर की घटना को लेकर किया है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गये लोगों के बीच में न जाकर मोदी ने यही संदेश दिया है कि उनकी नजर में जैसे मणिपुर भारत का हिस्सा नहीं है वैसे ही पहलगाम भी भारत का हिस्सा नहीं है और न ही उनके लिए वे मौतें कोई मायने रखती है। उनके लिए तो राज्य दर राज्य होने वाले चुनाव में सियासी बिसात बिछाना ज्यादा जरूरी है तभी तो वे न तो पहलगाम गये न ही दिल्ली में हुई सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए।

अतुल कुलकर्णी फिल्म अभिनेता ने जम्मू-कश्मीर के घटना स्थल पहुंच कर कहा कि इस समय पहली प्राथमिकता कश्मीर और कश्मीरियों के साथ खड़े होने की है। इस हालात में कश्मीर और कश्मीरियों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। देशवासियों को न केवल वादियों का आनंद लेने बल्कि पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए कश्मीर आना चाहिए। हफ्ते भर के बाद भी पीएम मोदी का जम्मू कश्मीर न जाने से तो यही संदेश निकलता है कि उनमें साहस की बेहद कमी है।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान को ही हथियार बनाकर मोदी पर प्रहार करते हुए न्यूज़ ऐजेंसी एएनआई को साक्षात्कार देते हुए कहा कि सबसे बड़ी समस्या ये है कि जब हमारे घर में हमने चौकीदार रखा हुआ है और हमारे घर में कोई घटना होती है तो हम सबसे पहले चौकीदार को ही तो पकड़ेंगे और उसी से पूछेंगे कि तुम कहां थे? ये घटना कैसे घटी ? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। मतलब पहलगाम में घटित आतंकवादी घटना के लिए सीधे तौर पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती  पीएम नरेन्द्र मोदी की जवाबदेही तय करते हुए जवाब मांग रहे हैं। उनका कहना है कि अगर चौकीदार के द्वारा ईमानदारी के साथ चौकीदारी की गई होती तो ऐसी घटना घटित नहीं होती। आतंकवादी आये, बड़े इत्मिनान से घटना को अंजाम दिया और आराम से तफरी करते हुए चले गए। तो फिर सवाल तो उठेगा ही कि सुरक्षा कर्मी कहां थे, खुफिया ऐजेंसी कहां थीं। घटना घटित होने के तत्काल बाद आपको पता चल गया कि आतंकवादी पाकिस्तान से आये थे तो ये बात आपको घटना के पहले क्यों नहीं पता चली ? मोदी सरकार द्वारा सिंधु जल संधि सस्पेंड करने पर भी शंकराचार्य ने सवालिया निशान लगाते सवाल किया है कि भारत के पास जल रोकने की कोई व्यवस्था है क्या ? उनके मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल भारत में जल रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर आज से सिंधु नदी जल रोकने की व्यवस्था का काम शुरू करेंगे तो काम पूरा होने में कम से कम 20 साल लगेंगे। 

माना जा सकता है कि अभिनेता अतुल कुलकर्णी और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आलोचक हों इसलिए मोदी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं मगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत तो हित चिंतक हैं क्योंकि मोदी सरकार के जरिए ही वे अपने हिन्दुत्ववादी ऐजेंडे को साकार करने के लिए लगी हुई है तब भी मोहन भागवत ने मोदी को राजधर्म निभाने को कह दिया है। राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना। राजा को अपना धर्म निभाना चाहिए। यही उपदेश तो 23 साल पहले 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को गोधराकांड के बाद दिया था। तब भी इस सीख को नरेन्द्र भाई ने सिर के ऊपर से निकाल दिया था तो क्या वे भागवत की सीख का पालन करेंगे? भाजपाई रंग में रंगे कथावाचक रामभद्राचार्य ने हाल ही में सम्पन्न हुए प्रयागराज कुंभ मेले में कहा था कि राष्ट्र की चिंता संत करता है, परिवार वाला भक्त नहीं, देश गांधी परिवार का नहीं है। कुंभ मेले में ऐसा यज्ञ, हवन करेंगे कि दुनिया से पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जायेगा। अब न यज्ञ हवन वाले बाबा दिख रहे हैं न ही पर्ची निकालने वाले बाबाओं का अता-पता है। 

हफ्ता बीतने के बाद अभी गोदी मीडिया के माध्यम से 5 - 6 सेंटीमीटर के सीने को 56 इंची छाती होने का ढोल पीटा जा रहा है। मोदी सरकार में एक रक्षा सलाहकार हैं, कब्र में पैर लटकाये 80 वर्षीय अजीत डोभाल हैं। रक्षा मंत्रालय भी बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल की ओर अग्रसर हो रहे राजनाथ सिंह के पास है और गृह मंत्रालय तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर निशाना साधे अमित शाह के अधीन है ही । पुलवामा हो या पठानकोट या फिर पहलगाम ही क्यों ना हो इन पर जो भी आतंकवादी हमले हुए और उसमें जो लोग असमय कालकलवित हुए उनकी मौतों का उत्तरदायित्व सीधे-सीधे इन्हीं तीनों अजीत डोभाल, राजनाथ सिंह और अमित शाह पर है यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर है। तो फिर पाकिस्तान से पहले अजीत डोभाल, राजनाथ सिंह और अमित शाह पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए और प्राश्चित करते हुए नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। क्योंकि जब तक घर के भीतर बैठे हुए जिम्मेदारों की जिम्मेदारी तय कर उन्हें दंडित नहीं किया जाता तब तक मृतकों और उनके परिजनों के साथ न तो न्याय होगा न ही उन्हें शांति मिलेगी, भले ही पाकिस्तान को नेस्तनाबूद ही क्यों न कर दिया जाय।

पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने जिस सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा पीटा था उसकी हकीकत तो वर्तमान में जो बीजेपी सरकार में मंत्री बने बैठे हैं वे ही कहा करते थे कि बालाकोट में बमुश्किल 2 कौवे मारे गए थे। रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सिंह ने भी कहा था कि बालाकोट में आतंकवादीयों का कुछ नहीं बिगडा हां मोदी एंड कंपनी ने जरूर सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर छद्म राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीट कर 2019 का लोकसभा चुनाव भारी बहुमत से जीत लिया था। 14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा आतंकी हमले में एक झटके में 40 जवान शहीद हो गए। भले ही इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली हो मगर देश का खुफिया तंत्र तो पूरी तरह से फेल तो हुआ न और खुफिया तंत्र गृहमंत्री अमित शाह के अधीन आता है तो सारी जिम्मेदारी अमित शाह की थी और वो अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह से फेल हो गये मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शाह को कांधे पर लादे ढोते रहे और आज भी ढो रहे हैं।

कहा जाता है कि पुलवामा के क्षेत्र में सेना के काफिले पर आतंकी हमला होने की आशंका खुफिया ऐजेंसी जता रही थी। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि सीआरपीएफ जवानों के लिए हवाई जहाज की मांग लगातार की गई थी लेकिन दिल्ली ने ठुकरा दिया था। मलिक ने तो मोदी सत्ता पर यहां तक इल्जाम लगाया है कि घटना के बाद दिल्ली ने उन्हें चुप रहने को कहा था। शायद यही कारण है कि पुलवामा आतंकी हमला चुनाव जीतने के लिए मोदी एंड कंपनी ने खुद करवाया था ऐसा आरोप आज भी लगाया जाता है और पुलवामा आतंकी हमले की जांच 6 साल बाद भी न कराया जाना मोदी एंड कंपनी के ऊपर लगाए जा रहे आरोप को पुख्ता करता है। 

देश की आजादी के बाद पहला मौका है जब कश्मीरी आवाम कह रहा है कि हम भारतीय हैं। यह मोदी सत्ता की बहुत बड़ी उपलब्धि है मगर बीजेपी से जुड़े हुए तथाकथित हिन्दूवादी संगठन जिस तरह से धर्म और समुदाय विशेष के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं और मोदी सरकार गांधी के बंदरों की भूमिका निभा रही है वह नरेन्द्र मोदी को हीरो की जगह खलनायक बना रही है। आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर आरोपियों के घरों को बुलडोजर से जमींदोज किया जा रहा है। चंडीगढ़ में 22 साला कश्मीरी छात्रा अरीबा के दोस्त को यह कहकर धमकाया गया कि तुम कश्मीरी पहलगाम हमले के लिए जिम्मेदार हो। उत्तराखंड में हिन्दू रक्षक दल देहरादून में कश्मीरी छात्रों को रातोंरात छोड़ने या अंजाम भुगतने का अल्टीमेटम दिया। यूपी के प्रयागराज में तस्वीरें छाप कर छात्रों को मकान खाली करने या हिंसा का सामना करने के लिए धमकाया गया। सोशल मीडिया पर टोल आर्मी द्वारा कश्मीरियों के खिलाफ नफरत परोसी जा रही है। जम्मू में कश्मीरी मुसलमानों को लेकर नफरती नारेबाजी की गई, छात्रों को पीटा गया। इसका मतलब है कि नये कश्मीर का वादा करने वाले मोदी के राज में कश्मीर में कोई भी सुरक्षित नहीं है यहां तक कि कश्मीरी पंडितों का पलायन भी बढ गया है। 

हकीकत तो यह है कि हिन्दू मुस्लिम की राजनीति ही मोदी का फैक्ट प्रोजेक्ट है इसके बिना मोदी की राजनीति 24 घंटे भी जिंदा नहीं रह सकती है और कश्मीर में तो मुसलमानों की बहुतायत है। सवाल तो यही है कि मुसलमानों के साथ टोल आर्मी जिस तरह से अत्याचार कर रही है तो मोदी गवर्नमेंट इनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस करेगी ? नरेन्द्र मोदी अलग - अलग मंचों पर खड़े होकर दुनिया भारत के साथ का ढोल पीट रहे हैं और चाइना ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पाकिस्तान के साथ है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 

स्वतंत्र पत्रकार

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