मिटेगा क्या साढ़े तीन दशक का सूखा ?
खरी - अखरी
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
संपादकीय। राजनीतिक कोठेधारियों द्वारा आधी आबादी के नाम पर बातें तो बड़ी - बड़ी की जाती हैं मगर जब राजनीतिक भागीदारी को शेयर करने की बारी आती है तो वे कोसौ का फासला बना लेते हैं। महिलाओं को राजनीति में वहीं भागीदारी दी जाती है जहां उनको संवैधानिक आरक्षण प्राप्त है। मजे की बात तो यह है कि वहां भी पुरुष अपनी दखलंदाजी बनाये रखता है। अब तो एक नया चलन चलने लगा है पत्नी के साथ पति के नाम लिखने का। मतलब पत्नी राजनीति में भी अपना नाम अकेले लिख कर अपनी पहचान नहीं बना सकती। इसे दासता नहीं कहा जाय तो फिर क्या कहा जाय ?
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। राजनीतिक दलों को प्रत्याशी चयन की मशक्कत करते हुए देखा जा सकता है। टिकिट की दौड़ में सबसे ज्यादा भीड़ पुरुषों की ही दिखाई दे रही है। महिलाओं की दावेदारी तो वहीं दिखाई दे रही है जिन सीटों पर महिलाओं को आरक्षण प्राप्त है। राजनीतिक दल भले ही महिलाओं को टिकिट देने की बातें करें परन्तु सामान्य सीटों पर आज भी पुरुषों का वर्चस्व बरकरार है वे किसी भी सूरत में अपनी दावेदारी छोड़ने को राजी नहीं हैं। अधिकांश पार्टियों की कोठेदारी पर भी पुरुष सांप की भांति कुंडली मारकर बैठे हुए हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति में भी महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। बहुत हद तक इसके महिलाएं खुद भी जिम्मेदार हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश महिलाओं द्वारा शायद ही कभी अपनी भागीदारी के लिए वजनदारी के साथ अपना पक्ष रखा जाता है।
महाकौशल के अन्तर्गत खासतौर पर जबलपुर की चार विधानसभा सीटों (पश्चिम - पूर्व - मध्य - केंट) पर नजर डाली जाय तो शायद ही इन चारों विधानसभा क्षेत्र में किसी पर भी किसी महिला को भाजपा और कांग्रेस दोनों ने आज तक टिकिट दी हो । यही हाल विन्ध्य के भी हैं जहां से अभी तक न तो भाजपा ने न ही कांग्रेस ने किसी महिला को चुनाव मैदान में उतारा है। इससे बेहतर हालात तो बुंदेलखण्ड के हैं। जहां से महिलाएं न केवल विधायक बनी बल्कि मंत्री भी बनी।
महाकौशल के भीतर ही आती है कटनी जिला मुख्यालय की मुडवारा विधानसभा सीट। यहां भी महिला नेत्रियों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया गया है । यहां 35 साल पहले 1988 में श्रीमती रामरानी जौहर कांग्रेस से विधायक रही हैं तो वहीं 20 वर्ष पूर्व श्रीमती अलका जैन (एडवोकेट) भाजपा की टिकिट पर विधायक बनी थी। श्रीमती अलका जैन कुछ समय के लिए उमा भारती के मंत्रीमंडल का हिस्सा भी रहीं हैं। नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही उन्हें घर का रास्ता दिखा दिया गया था।
मुडवारा विधानसभा क्षेत्र में महिला नेत्रियों के मामले में जहां कांग्रेस पार्टी की जमीन 35 साल से बंजर पड़ी है तो वहीं भाजपा की भूमि भी 20 वर्ष से पडती पड़ी हुई है। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि कांग्रेस तकरीबन आधी सीटों पर महिलाओं को टिकिट देगी। अब देखते हैं कि प्रियंका गांधी वाड्रा का कहा जमीनी हकीकत बन पाता है या फिर वह भी हवा हवाई जुमला बनकर रह जायेगा।
देखना है कि कांग्रेस और भाजपा क्या जबलपुर की चार विधानसभाओं में से किसी पर भी महिला उम्मीदवार उतारेंगी। इसी तरह दोनों पार्टियां क्या विन्ध्य क्षेत्र में महिलाओं को टिकिट देने का साहस दिखायेंगी। साथ ही क्या महिला नेत्रियों के मामले में मुडवारा विधानसभा का साढ़े तीन दशक से चला आ रहा सूखा 2023 में दोनों पार्टियों में से कोई मिटा पायेगी ?
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