तेरा क्या होगा रे.............
कटनी। कहा जाता है कि कमल कीचड़ में खिलता है। यह अर्ध सत्य है। पूर्ण सत्य यह है कि कमल खिलने के लिए सरोबार की तलहटी में कीचड़ के साथ ही स्वच्छ और निर्मल जल होना अति आवश्यक है। कीचड़ और दूषित पानी में भैंस लोरती है या फिर सुअर। यह बात उन कमल विचारधारियों को समझनी चाहिए जो अक्सर कहते फिरते हैं कि जितना ज्यादा कीचड़ होगा उतना अधिक कमल खिलेगा।
ऐसे ही कीचड़ और सड़ांध मारते सरोबरों में तब्दील हो चुके हैं मुडवारा और विजयराघवगढ़ के सरोबर। जिन्हें मैला कर दिया है फूल छाप कांग्रेसियों ने और अब समय आ गया है इन सरोबरों को स्वच्छ और निर्मल करने का। अभी नहीं तो कभी नहीं। ये कहना है उन देवतुल्य कमलधारियों का जिनकी आंतरिक पीड़ा का गलाघोंट कर पीठाधीश्वरों द्वारा लादे - थोपे गये उम्मीदवार को जबरिया जिताने का हुक्मराना (फतवा) जारी किया गया है।
लगता भी यही है कि अब आम कमलधारियों ने गुलाम मानसिकता से ऊपर उठ कर अपने क्षेत्र के सरोबर को स्वच्छ करने का मन बना लिया है। जिसका अह्सास भी फूल छापियों को हो गया है तभी तो उन्होंने जातिवादी सहित अन्य पैंतरे चलने शुरू कर दिये हैं। वैसे भी अब बमुश्किल दो दिन का समय खुले प्रचार के लिए बचा है। 15 नवम्बर की शाम से बंद हो जायेगा कानफोड़ू शोरगुल। फिर समय शुरू होगा भितरघाती प्रचार का (दो रात एक दिन)। जिसमें परम्परानुसार खेला जायेगा अपनी क्षमतानुसार कपड़ा - लत्ता, रुपिया - पैसा, मदिरा - दारू आदि नजराना देने का खेल।
चलिए पहले जायजा लेते हैं विजयराघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र का जहां से कमल छाप पार्टी से उम्मीदवार हैं प्रदेश में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में दूसरे नम्बर के धनाढ्य। जो मंत्री भी रह चुके हैं। जमीन से ज्यादा हवा में रहते हैं। बुधनी से ज्यादा चर्चित सीट है विजयराघवगढ़ की। कहने को यहां पर कई दलों के साथ निर्दलीय भी मैदान में हैं मगर मुख्य मुकाबला फूल और पंजा छाप में ही है। यह भी कह सकते हैं कि जंग राजा भोज और गंगू तेली के बीच है।
चुनावी रणभेरी बजने के पहले ही फूल छाप ने अपनी आसन्न पराजय की आशंका को भांपते हुए धार्मिक आयोजन कर लोगों की भावनाओं को प्रभावित करने की कोशिश की। जिसमें नेताओं के साथ ही हिन्दुत्ववादी मठाधीशों को बुलाया गया। इस पर भी मन नहीं माना तो तथाकथित टाप लेबल की नचनिया को नचवाया गया फिर भी आशातीत सफलता न मिलने के कारण "चुनाव लड़ू या न लड़ू" के लिए अपने पक्ष में वोटिंग कराने की नौटंकी की गई, जबकि हकीकत यही है कि "काहे पड़े हो चक्कर में जब पार्टी में कोई नहीं है टक्कर में" वाली स्थिति है।
अब जब चुनावी जंग शुरू हो गई और कारवां आगे बढता गया तो जनता की बदलावी मानसिकता को भांपते हुए फूल छाप प्रत्याशी द्वारा एक दिन के अंतराल में दो केन्द्रीय मंत्रियों की आमसभा कराई गई इसके बीच में किन्नर पीठाधीश्वर को बुलाकर" गली - गली गाता जाए बंजारा" कराया गया।
बताया जाता है कि गंगू तेली को मिल रहे जन समर्थन से राजा भोज की सांसे उखड़ने सी लगी हैं और अब राजा भोज जातिवादी चाल चलने जा रहे हैं। राजा भोज जिस जाति से आते हैं उसी जाति के उम्रदराज लोगों से वे अपने पैर पड़वाते हैं। जो पैर न पड़े उस पर भृकुटी टेढ़ी करते रहते हैं और खुद गैरजातीय लोगों का पादुका पूजन - चरणामृत पान कर अपनी राजनीतिक नैया खेते हैं।
देखना दिलचस्प होगा कि हलवा - पूड़ी के भंडारे के साथ ही फेंके जाने वाले जातीय पांसे में कितनी मछलियां फंस कर नैया पार लगाती हैं वह भी तब जब देवतुल्यों ने सरोबर को स्वच्छ करने की ठान ली है।
दूसरा कमल सरोबर है मुडवारा में। जिसमें 20 साल से कमल ही खिल रहे हैं। मगर कमल सरोबर का पानी पिछले दस सालों से दूषित होना शुरू हुआ और पांच साल से तो पूरे का पूरा कमल सरोबर कीचड़ से पटा पड़ा है जिसमें कमल तो खिलने से रहा वहां तो अब बाकी बचे दो चौपाये ही डेरा डालेंगे।
इसलिए यहां भी मूल कमलियों ने सरोबर को साफ सुथरा करने की दिशा में पग बढा दिए हैं। जिनका साथ फूल छाप बने दो लोग चुनावी मैदान में ताल ठोंक कर दे रहे हैं जिसके पीछे इनको अपना पिछला (नगरीय निकाय चुनाव) हिसाब - किताब चुकता करना बताया जाता है।
वैसे तो मुडवारा में 18 पहलवान मुगदर भांज रहे हैं। आमने - सामने की दो स्तरीय कुश्ती दिख रही है। एक है फूल और पंजा के बीच। दूसरी है सेव और हीरा के बीच। ये दोनों (सेव-हीरा) प्रयासरत हैं कि दिख रही द्विय कोणीय फाईट को त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय बना दिया जाए। देखिए ये कहां तक सफल होते हैं।
मैदान में हाथी - साईकल - झाड़ू तो हैं ही अपने - अपने परम्परागत वोट बैंक के साथ। मुडवारा और विजयराघवगढ़ में फूल की दयनीय हालत का असर "गांव में आई होरी - बाम्हन बचे न कोरी" की माफिक बहोरीबंद और बडवारा विधानसभा को भी प्रभावित कर रहा है। यहां भी फूल के बागी फूल को निपटाने में लगे हुए हैं जबकि यहां के प्रत्याशी मूलतः फूल वाले ही हैं। बहोरीबंद में तो त्रिकोणीय संघर्ष स्पष्ट दिखाई दे रहा है जबकि बडवारा में त्रिकोणीय फाईट होने के आसार बनते दिखाई दे रहे हैं।
हां एक बात और गैर फूल छाप वालों का संघर्ष केवल फूल छाप वाले से नहीं है। उन्हें प्रशासनिक मशीनरी से भी संघर्ष करना है जो दिखती तो दिये (जनता) के साथ है मगर वास्तविक रूप से होती हवा (कुर्सीधारी) के साथ है। फिर भले ही वह यह लाख प्रचार-प्रसार करे कि "प्रलोभन में आये बिना स्वविवेक से मतदान करें। अनैतिक गतिविधि की सी विजन पर शिकायत करें" । दिखाने और खाने के दांत अलग - अलग तो होते हैं न।
वैसे कहते हैं न कि "लाख मुद्दई बुरा चाहे तो क्या होता है वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है"। किसके भाग्य में जीत है किसके हार। इसका खुलासा तो 3 दिसम्बर को नतीजा आने पर होगा तब तक राजनीति के दांव पेंच का आनंद लिया जाय।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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