यह फोटो बयां करती है प्रथम नागरिक के अपमान को
कटनी। इस फोटो को ध्यान से देखिए। यह फोटो बहुत कुछ कहती है। यह फोटो बयां करती है प्रथम नागरिक के अपमान को। यह फोटो बताती है कहानी पैरों तले रौंदे जाने वाले जनप्रतिनिधि के सम्मान की। यह फोटो कहती है बारडोली के हुए अपमान को। इस फोटो में साफ - साफ दिख रहा है कि जिस कुर्सी पर प्रथम नागरिक को बैठाना चाहिए था वहां बैठाया गया है एक अजनप्रतिनिधि को। प्रथम नागरिक का स्थान स्थानीय स्तर पर सांसद और विधायक से ऊपर होता है। किसी भी राजनीतिक दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही क्यों न हो वह जनप्रतिनिधि नहीं होता। उससे ज्यादा ऊंचा पद पंच और पार्षद का होता है क्योंकि उसे जनता अपना प्रतिनिधि अपना वोट देकर चुनती है।
इस फोटो ने चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में किए गए भाजपाई अहंकार की याद ताजा कर दी है। चलो वहां तो विपक्षी को मात देने के लिए चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने जनमत का अपमान किया था। यह अलग बात कि उस सम्मान की रक्षा देश की सबसे बड़ी अदालत को आगे आकर करनी पड़ी। मगर यहां तो भाजपाई सत्ता के नुमाइंदों ने चुने हुए जनप्रतिनिधियों (भाजपाई) की नुमाइंदगी में जनता द्वारा निर्वाचित महापौर (प्रथम नागरिक) (भाजपा) को कुर्सी पर बैठाने को लेकर किया गया। जिसकी दास्तान ऊपर लगी तस्वीर चिल्ला - चिल्लाकर कर रही है। यह तस्वीर यह भी बताती है कि यहां के जनप्रतिनिधियों के बीच किस तरह का आपसी तालमेल और भाईचारा है। सबसे ज्यादा शर्मनाक पहलू यह है कि इस फोटो को लगाकर मीडिया ने प्रसारित - प्रचारित तो किया मगर किसी ने भी महापौर के प्रोटोकोल में की गई गंभीर त्रुटि पर एक शब्द तक लिखने की हिम्मत नहीं जुटाई।
यह तस्वीर कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत जल स्त्रोतों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन पर आयोजित की गई थी। जिसमें जनप्रतिनिधि, सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की मौजूदगी रही। बैठक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की मंशानुसार आयोजित की गई थी। इसलिए बैठक व्यवस्था और जनप्रतिनिधियों के मान सम्मान की पूरी जबावदेही कलेक्टर की बनती है। चंडीगढ़ में हुए अपमान को तो सुप्रीम कोर्ट ने बचा लिया, बारडोली के अपमान को बचाने कौन आयेगा आगे ?
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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