खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) आतंकवाद का समूल नाश जरूरी लेकिन युद्ध में केवल और केवल विनाश हासिल
कल सुबह जैसा कि आपको ज्ञात होगा भारत में इस तरह से सीमा पार हमलों का जवाब देने और उन्हें रोकने तथा उनका प्रतिरोध करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया है। ये कार्रवाई नपी तुली नानस्ट्रेजकली आनुपातिक और जिम्मेदारी पूर्ण है। ये आतंकवाद के इन्फ्रास्ट्रक्चर को समाप्त करने और भारत में भेजे जाने वाले संभावित आतंकवादियों को असक्षम बनाने पर केन्द्रित है। आपको यह भी स्मरण होगा कि 25 अप्रैल 2025 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पहलगाम आतंकवादी हमले पर एक प्रेस वक्तव्य जारी किया था जिसमें आतंकवाद के इस निंदनीय कार्य के अपराधियों, आयोजकों, फाइनेंसरों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के दायरे में लाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। भारत की आज की इस कार्रवाई को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इस हमले का मुख्य उद्देश्य इसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित करना है। पिछले वर्ष आप भी जानते हैं सवा दो करोड़ से अधिक पर्यटक कश्मीर आये थे। इस हमले का मुख्य उद्देश्य संभवतः ये था कि कि इस संघ राज्य क्षेत्र में विकास और प्रगति को नुकसान पहुंचा कर इसे पिछड़ा बनाये रखा जाय और पाकिस्तान से लगातार होने वाले सीमा पार आतंकवाद के लिए उपजाऊ जमीन बनाने में सहायता की जाय। हमले का तरीका जम्मू-कश्मीर और शेष राष्ट्र दोनों में साम्प्रदायिक दंगे भड़काने के उद्देश्य से ही प्रेरित था। इसका श्रेय सरकार और भारत के सभी नागरिकों को दिया जाना चाहिए कि इन प्रयासों को विफल कर दिया गया। पहलगाम आतंकवादी हमले की जांच से पाकिस्तान के आतंकवादियों से सम्पर्क उजागर हुए। रेसिसटेंश फ्रंट (THE RESISTANCE FRONT TRF) द्वारा किए गए दावे और लश्कर-ए-तैयबा से ज्ञात सोशल मीडिया हेंडल द्वारा री-पोस्ट किया जाना इसकी पुष्टि करता है। चश्मदीद गवाहों और विभिन्न जांच एजेंसियों को उपलब्ध अन्य सूचनाओं के आधार पर हमलावरों की पहचान भी हुई है। हमारी इंटेलिजेंस ने योजनाकारों और उनके समर्थकों की जानकारी जुटाई है। इस हमले की रूपरेखा भारत में सीमा पार आतंकवाद को अंजाम देने के पाकिस्तान के लम्बे टेपरिकार्डर से भी जुड़ी हुई है जिसके लिखित और स्पष्ट दस्तावेज उपलब्ध हैं। पाकिस्तान दुनिया भर में आतंकवादियों के लिए एक शरण स्थल के रूप में पहचान बना चुका है। यहां अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी सजा पाने से बचे रहते हैं। इसके अलावा पाकिस्तान में इस मुद्दे पर विश्व और फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स जैसे अन्तरराष्ट्रीय मंचों को जानबूझकर गुमराह करने के लिए भी जाना जाता है। कश्मीर का एक मामला जिसमें एक आतंकवादी को पाकिस्तान ने मृत घोषित कर दिया था और फिर अन्तरराष्ट्रीय दबाव के परिणामस्वरूप वो जीवित पाया गया। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है। यह भी आवश्यक समझा गया कि 22 अप्रैल के हमले के अपराधियों और उनके योजनाकारों को न्याय के कटघरे में लाया जाय। हमले के एक पखवाड़े के बाद भी पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र या अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में आतंकवादीयों के इन्फ्रास्ट्रक्चर के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया गया है उल्टे वो इंकार करने और आरोप लगाने में ही लगा रहा। पाकिस्तान आधारित आतंकवादी मौजूदगी पर हमारी खुफिया निगरानी ने संकेत दिया है कि भारत के विरुद्ध आगे भी हमले हो सकते हैं। अतः इनको रोकना और इनसे निपटना दोनों को बेहद आवश्यक समझा गया। एक समूह ने खुद को रेसिसटेंश फ्रंट TRF कहते हुए इस हमले की जिम्मेदारी ली है। ये समूह संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित पाकिस्तानी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है। ये उल्लेखनीय है कि भारत ने मई और नवम्बर 2024 में संयुक्त राष्ट्र की 1267 कमेटी की मानीटरिंग टीम को अर्धवार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें टीआरएफ के बारे में साफ इनपुट दिये गये थे। जिसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के लिए कवर के रूप में टीआरएफ की भूमिका सामने आई थी। इससे पहले भी दिसम्बर 2023 में भारत ने इस टीम को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के बारे में सूचित किया था। जो टीआरएफ जैसे छोटे आतंकवादी समूहों के माध्यम से अपनी गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं। इस संबंध में 25 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रेस व्यक्तव्य टीआरएफ के संदर्भ को हटाने के लिए पाकिस्तान के दबाव पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
उक्त बयान विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ आयोजित की गई प्रेस वार्ता में एक परिपक्व देश को रिप्रजेंट करते हुए बड़ी नपीतुली भाषा में संयम के साथ दिया है। इसी प्रेस कांफ्रेंस में किस तरह से सेना ने पाकिस्तान स्थित 9 चिन्हित आतंकवादी ठिकाने पर विध्वंसक कार्रवाई को अंजाम दिया उसकी जानकारी हिन्दी में कर्नल सोफिया कुरैशी तथा विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने अंग्रेजी में दी। प्रेस कांफ्रेंस में बड़ी संयमित भाषा तथा उत्तेजित हुए बिना जानकारी दी गई कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी अड्डे मर्कज सुभानअल्लाह बहावलपुर जो कि बार्डर से 100 किलोमीटर दूर है और वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय है, मर्कज तैयबा मुरीदके जो कि बार्डर से 18-25 किलोमीटर दूर है और जमात-उल-दावा का केन्द्र है, सर्जल कैंप सियालकोट बार्डर से 6 किलोमीटर अंदर है, मेहमूना जोया सियालकोट बार्डर से 12-18 किलोमीटर दूर हिज्बुल का कैंप है, मर्कज अहले हदीथ बरनाला भींवर एलओसी से 9 किलोमीटर दूर है जहां पर लश्कर के कैंप में आतंकवादियों को हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है, मर्कज अब्बास कोटली एलओसी से 13 किलोमीटर दूर लश्कर-ए-तैयबा का ट्रेनिंग सेंटर है, मस्कर राहिल शहीद घुलपुर कैंप कोटली एलओसी से 30 किलोमीटर दूर यहीं पर पुंछ हमला और तीर्थ यात्री बस पर हमला करने की ट्रेनिंग दी गई थी, सवाई नल्ला कैंप मुजफ्फराबाद यह भी एलओसी से 30 किलोमीटर दूर पहलगाम हमले के आतंकियों को यहीं पर ट्रेंड किया गया था और सयदाना बिलाल कैंप मुजफ्फराबाद जो कि जैश-ए-मोहम्मद का स्टेजिंग एरिया है तथा यहीं पर हथियार और बम रखे जाते हैं उन्हें सटीक निशानेबाजी से ध्वस्त कर दिया है। कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि भारतीय सेना ने ना तो पाकिस्तान के किसी सैन्य ठिकाने को निशाना बनाया ना ही किसी पब्लिक प्लेस में कोई क्षति पहुंचाई।
मगर गोदी मीडिया के न्यूज एंकरों ने जिस उन्मादी भाषा का उपयोग करते हुए समाचार प्रसारित किये उसने मोदी सरकार द्वारा जारी की गई एडवाइजरी में दी गई गाइडलाइन की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी। अभी तक गोदी मीडिया और सरकार की भाषा एक जैसी हुआ करती थी पहली बार है जब सरकार और गोदी मीडिया दोनों की भाषाई दूरी साफ नजर आई । जहां सरकार ने जवाबी कार्रवाई की जानकारी बड़ी संयमित तरीके से नपी तुली भाषा में दी वहीं गोदी मीडिया का कवरेज उन्माद से भरा हुआ है। सरकार से सवाल पूछने में जिनके अंगवस्त्र खराब हो जाते हैं उस गोदी मीडिया के एंकर आज वीररस में कवरेज कर रहे हैं। राहत की बात है कि अभी भी अफसरों की जुवां गोदी मीडिया के एंकरों से अलग है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कार्रवाई को नपा-तुला, आनुपातिक, जिम्मेदारी पूर्ण बताया वहीं गोदी मीडिया के कवरेज में नपीतुली, आनुपातिक और जिम्मेदारी का अंश भी नहीं था। जिन्होंने पत्रकारिता धर्म को ही रौंद दिया हो वो धर्म के नाम पर पत्रकारिता का झांसा दे रहे हैं। तारीफ-ए-काबिल है विदेश मंत्रालय और सेना जिसने प्रेस कांफ्रेंस में इस अंतर का ध्यान रखा।
सेना का संदेश यही था कि इस कार्रवाई को धर्म से नहीं जोड़ा गया शायद इसीलिए एक रणनीति के तहत पहली बार दो महिला अफसरों को प्रेस वार्ता के लिए चुना गया। गोदी मीडिया द्वारा लगातार यह प्रचारित किया गया कि आतंकी हमला भारत में साम्प्रदायिक दंगों को भड़काने के लिए किया था उसे नागरिकों ने नकार दिया। सेना ने आतंकवाद को धर्म के चश्मे से नहीं देखा। आतंकी हमले का जबाब भी इसलिए नहीं दिया गया है कि आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर मारा था। सरकार ने सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ जबाबी तौर पर कार्रवाई की है। भारत ने जिस धर्म के तहत जबाबी कार्रवाई की है उस धर्म की समझ तो गोदी मीडिया को कभी भी हो ही नहीं सकती। विक्रम मिसरी ने प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि भारत ने आतंकवादियों की पहचान कर ली है लेकिन यह नहीं बताया कि वे कौन हैं, उनके नाम क्या हैं। भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि हमला केवल चिन्हित 9 आतंकी ठिकानों पर किया गया है न कि देश और सेना पर। लेकिन गोदी मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर बता रहा है कि पाकिस्तान में घुसकर मारा, पाकिस्तान को मारा।
प्रेस कांफ्रेंस में केवल यही बताया गया कि कितने आतंकी ठिकानों पर हमला किया गया, उन ठिकानों का पूर्व के आतंकी हमलों से क्या संबंध था मगर यह कहीं नहीं बताया गया कि कितने आतंकवादी मारे गए। लेकिन गोदी मीडिया के चैनलों पर मारे गए आतंकवादियों की संख्या 70 से लेकर 900 तक बताई गई। एबीपी न्यूज ने अपने थम्बनेल में 900 आतंकियों के मारे जाने की हेडलाइन डाली तो इंडिया टुडे के थम्बनेल पर 90 आतंकी मारे जाने की हेडलाइन लगाई। वहीं रिपब्लिक ने लिखा कि लश्कर की टाॅप लीडरशिप समाप्त कर दी गई है तो एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से अपने थम्बनेल में लिखा कि 70 आतंकी मारे गए हैं। यू ट्यूब चैनल one india news ने लिखा है कि दस सेकंड में 200 आतंकवादी मारे गए। न्यूज 18 के एंकर ने ट्वीट कर जानकारी दी कि 70 आतंकी मारे गए। सवाल यह है कि क्या ये न्यूज चैनल देश का मजाक नहीं उड़ा रहे हैं ? आखिर इनके पास इतनी संख्या में आतंकियों के मारे जाने के आंकड़े कहां से आ रहे हैं। क्योंकि सरकार ने तो आधिकारिक तौर पर आतंकियों के मारे जाने के कोई आंकड़े जारी किये ही नहीं हैं और सरकार जब भी आंकडे बताती है तो वह एक ही होता है चार-चार नहीं।
एक तरफ सरकार कह रही है कि अफवाहों पर ध्यान नहीं दें, इधर-उधर की सूचनाओं के बजाय आधिकारिक सूचनाओं का इंतजार करें लेकिन प्रेस कांफ्रेंस होने के पहले और उसके बाद भी गोदी चैनल बेलगाम सांड की तरह मनचाही उत्तेजनात्मक, घृणात्मक, गंगा-जमुनी तहजीब में जहर घोलने वाली खबरों को परोस रहे हैं। जबकि 26 अप्रैल को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक नोटिस जारी कर बकायदा चेतावनी दी है कि आधिकारिक सूचनाओं को ही फालो करें। नोटिस में साफ - साफ लिखा है कि सूत्रों के हवाले से आने वाली जानकारी से बचें। सैन्य आपरेशन और मूवमेंट के लाइव कवरेज की मनाही की गई है। कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ऐसे शाट्स नहीं दिखायें और सूत्रों के हवाले से रक्षा आपरेशन पर रिपोर्टिंग न करें। न्यूज चैनल ऐजेंसियों और सोशल मीडिया यूजर्स को हिदायत दी गई है कि कानून के दायरे में रहकर ही सुरक्षा मामलों पर रिपोर्टिंग करें। इस नोटिस में लिखा है कि कारगिल युद्ध, मुंबई हमले और कंधार हाईजैकिंग के संदर्भ में बिना रोकटोक की कवरेज से राष्ट्रीय सुरक्षा को क्षति पहुंची थी। इन घटनाओं से जिम्मेदारी के साथ की गई रिपोर्टिंग की अहमियत रेखांकित की जाती है।
मगर गोदी मीडिया तो घूम - घूम कर मूत रहा है जैसे उसे किसी एडवाइजरी का डर नहीं है क्योंकि सैंया तो कोतवाल हैं ही। गोदी मीडिया चैनलों पर सिंदूर और सुहागन की मांग उजाड़ने का बदला लेने को उछाला जा रहा है जबकि सरकार ने प्रेस कांफ्रेंस में केवल आपरेशन सिंदूर ही कहा है। कांफ्रेंस में यह भी नहीं बताया गया कि आपरेशन सिंदूर नाम किसने रखा, कैसे रखा, क्यों रखा लेकिन गोदी मीडिया के कवरेज में सुहागन और सिंदूर को लेकर हेडलाइन बनाई जा रही हैं। गोदी मीडिया को किस सूत्र ने बताया कि आपरेशन सिंदूर नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रखा है। क्या सूत्रों की अलग से कोई प्रेस कांफ्रेंस चल रही है। न्यूज 18 को सूत्रों ने बताया है कि सिंदूर नाम मोदी ने बैठक में सेना को दिया था। न्यूज 18 के एक टिकर में लिखा गया कि भारतीय सेना ने बेटियों के सुहाग का बदला लिया है स्क्रीन पर फ्लैश किया जाता रहा सबसे बड़ी खबर सबसे पहले कवरेज। एक चैनल कह रहा है कि सिंदूर उजाड़ा गया तो सिंदूर खेला कर दिया गया। ओम शांति ओम फिल्म का डायलॉग कहा गया कि सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो। गोदी मीडिया चैनलों द्वारा अपनी रिपोर्टिंग में उतार चढ़ाव के जरिए भावावेश पैदा करने की कोशिश की जा रही है। तथ्यों की गलती के साथ साथ वर्तनी भी गलत दिखाई दे रही है।
क्रिया की प्रतिक्रिया के तहत एलओसी पर कई जगहों पर फायरिंग होने की घटना की रिपोर्टिंग अखबारों में प्रकाशित हुई है। अमर उजाला ने लिखा है कि पाक सेना की गोलीबारी से पुंछ में दस नागरिकों की मौत कई घायल। टाइम्स आफ इंडिया ने पीटीआई के हवाले से रिपोर्ट किया है कि जम्मू कश्मीर प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत के आधार पर जानकारी है कि नियंत्रण रेखा के पास के गाँव में पाकिस्तान की तरफ से हुई गोलीबारी में 7 लोग मारे गए हैं तथा 38 लोग घायल हुए हैं। पाकिस्तान ने हमले का जबाब देने की बात कही है। भारत ने सीमावर्ती राज्यों अलर्ट जारी किया है। पंजाब में फिरोजपुर, फजिल्ठा, पठानकोट, अमृतसर, गुरदासपुर राजस्थान में श्रीगंगानगर, बीकानेर, बाडमेर, जैसलमेर, में सरकारी और प्राइवेट स्कूल बंद कर दिए गए हैं। बीकानेर और जोधपुर एयरपोर्ट बंद कर दिया गया है। यूपी में भी रेड अलर्ट जारी किया गया है। फैक्ट चैकर मोहम्मद जुबेर ने सोशल मीडिया पर भेज जा रहे फेक मैसजों से सावधान रहने को कहा है।
सवाल यह है कि क्या परिस्थितियां आगे चलकर युद्ध में तब्दील हो जायेंगी ? यह विषय अटकलों और विश्लेषण का है। युध्द - युद्ध होता है, सीमित युद्ध कुछ नहीं होता। कब कौन सा हमला, कौन सी छोटी झड़प बड़े युद्ध में बदल जाये कोई नहीं जानता। प्रथम विश्व युद्ध में मित्र और शत्रु दोनों राष्ट्रों को लगा था कि युद्ध उंगलियों की गिनती में खत्म हो जायेगा मगर वह साढे़ चार साल तक चला और डेढ़ से दो करोड़ लोग मारे गए। युध्द से केवल और केवल विनाश होता है। युध्द के उन्माद से विनाश होता है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Post a Comment