राजनीतिक डीएनए ठीक करने की जरूरत


कटनी। जिसका राजनीतिक डीएनए ही खराब हो उससे नगर विकास की उम्मीद की जाना बेमानी ही कहा जायेगा। नगरीय निकाय के महापौर चुनाव में जनता के सामने मुख्यतः तीन प्रत्याशी थे। एक कांग्रेस का, दूसरा भाजपा का और तीसरा भी भाजपा का मगर बागी।

जनता इसके पहले वाले भाजपाई महापौर का कार्यकाल देख चुकी थी। ट्रिपल इंजन की सरकार तथा एक ही पार्टी के तीन नमूनों ने मिलकर शहर विकास की जो मिशाल पेश की है वह किसी से छुपा नहीं है। इसके बावजूद एकबार फिर भाजपाई बहरूपिये के मायाजाल में जनता फंस ही गई। अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।

अब चुना गया महापौर जनता की अपेक्षाओं में खरा नहीं उतर पा रहा है तो इसमें महापौर का क्या दोष !  दोषी तो जनता है जिसने खुद अपने पैरों को कुल्हाड़ी पर रखा है। जनता इतनी नादान तो थी नहीं कि उसे इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि वह जिस भाजपाई बागी को महापौर चुनने जा रही है वह आज नहीं तो कल भाजपा में लौट ही जायेगा। और वही हुआ भी। जनता के हाथ क्या आया - बाबा जी का ठन - ठन गोपाल। इससे तो लाख दर्जे वर्तमान विधायक है जो निर्दलीय महापौर चुने जाने के बाद पूरे कार्यकाल में निर्दलीय महापौर ही बना रहा। उस दौरान वह जन अपेक्षाओं - जन भावनाओं की हत्या करने से तो बचा रहा।

महापौर शहर का प्रथम नागरिक है और इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी कि नगर की दो - दो संस्थाओं द्वारा शहर में मेडिकल कॉलेज खोले जाने की आवाज़ उठा रही है और शहर का मुखिया कुंभकर्णी नींद सो रहा है। शहरवासी शहर के भीतर सुगम यातायात दिलाये जाने की मांग कर रहे हैं और शहर का मुखिया यातायात के विघ्नकर्ताओं से याराना निभाते हुए दिखाई दे रहा है। और अगर ऐसा नहीं है तो अभी तक जगन्नाथ तिराहे से लेकर डॉ गर्ग चौराहे तक पसरे पड़े अतिक्रमण को हटाकर सड़क का चौड़ीकरण क्यों नहीं किया गया  ?

एक पूर्व महापौर के विधायक पुत्र ने तो खिलाड़ियों को विश्वास में लेते हुए मात्र दो माह के लिए साधूराम स्कूल में लग रही चौपाटी को खेल मैदान के एक हिस्से में लगाने चिरौरी की थी। मगर हुआ यह कि ऊंगली पकड़ कर पहुंचा पकड़ लिया गया। आज जब खेल मैदान का विकास किये जाने की प्रक्रिया चालू है तो उसमें चौपाटी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है बल्कि यह कहा जाय कि चौपाटी नासूर बन गई है तो गलत नहीं होगा।

महापौर द्वारा चौपाटी से अतिक्रमण हटाने की दिशा में काम किया जा रहा है जबकि चौपाटी अपने आप में अतिक्रमण है जिसे तत्काल समूल हटाये जाने की जरूरत है। खेल मैदान में चौपाटी लगवाने वाले महापौर के विधायक पुत्र ने तो खेल मैदान को अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खेल मैदान में विकसित करने की डींगें हांकी थी मगर हुआ क्या खेल मैदान तबेले में तब्दील हो गया।

स्थानीय विधायक भी कुछ कम नहीं हैं। उनने सरकार के लाखों रुपये खर्च कराकर एक खेल मैदान झिंझरी में जिला न्यायालय के पास बनवाया है जो वर्तमान में विधायक और खेल विभाग का मर्सिया पढ़ रहा है। फारेस्टर प्ले ग्राउंड के विस्तार की योजना स्थानीय विधायक लेकर आये तो हैं मगर वह तब तक मूर्तरूप नहीं ले सकती जब तक खेल मैदान से चौपाटी को हटा नहीं दिया जाता है।

मगर विधायक, जो खुद एक खिलाड़ी हैं, प्रदेश ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष हैं, चौपाटी को हटाये जाने को खामोश दिखाई दे रहे हैं। विधायक की तो चला चली की बेला है मगर महापौर को तो अभी लंबी पारी खेलनी है। भाजपा में शामिल होकर महापौर ने अपनी समाजसेवी संस्था द्वारा की गई अतिक्रमित जमीन को मुक्त होने से बचा लिया। इसमें शहरवासियों को आपत्ति भले ना हो लेकिन खेल मैदान विकास के रास्ते आ रही रुकावट चौपाटी को बरकरार रखने में घोर आपत्ति है।

अच्छा होगा महापौर अपने खराब हो चुके राजनीतिक डीएनए को दुरुस्त करते हुए शहर विकास के लिए शहरवासियों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की तैयारी में लग जायें। वरना विधायक के साथ ही कहना पड़ सकता है कि :

उमर भर गा़लिब यही भूल करता रहा

धूल चेहरे पे थी और आईना साफ करता रहा


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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