छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सरकारें पी रही लहू पेंशनर्स का

म.प्र./ छ. गढ़। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में एक साथ चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो, चाहे भाजपा की या फिर अलग - अलग कांग्रेस और भाजपा की, दोनों प्रदेशों की सरकारों ने हमेशा पेंशनर्स हितों की अनदेखी ही की है। दोनों प्रदेश की सरकारें राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 की गलत व्याख्या कर कर्मचारियों और पेन्शनर्स को दिये जाने वाले मंहगाई भत्ते और मंहगाई राहत में सदैव अडंगा लगाने से बाज नहीं आती, खासतौर पर पेंशनर्स को मंहगाई राहत देने के मामले में।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 दोनों राज्यों को अपने - अपने पेंशनरों को पेंशन देने के लिए 6वीं अनुसूची में दिए गए प्रावधानों के तहत दायित्वाधीन बनाती है । धारा 49 और 6वीं अनुसूची की पांचों कंडिकाओं तथा पांचवीं कंडिका की दोनों उपकंडिकाओं में कहीं भी नहीं लिखा है कि केन्द्र सरकार द्वारा घोषित मंहगाई राहत (डी आर) मध्यप्रदेश सरकार अपने पेंशनरों को देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद जारी करेगी।

धारा 49 और 6वीं अनुसूची में दिये गए प्रावधान केवल इतना कहते हैं कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार पेंशन भुगतान का दायित्व अपनी जनसंख्या के अनुपात में उठाएंगे । दोनों राज्य सरकारों ने पेंशन शेयर को भी तय कर लिया है । जिसके अनुसार मध्यप्रदेश सरकार 76 फीसदी और छत्तीसगढ़ सरकार 24 फीसदी के अनुपात में शेयर करेंगे । दोनों सरकारें वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर अर्थात 31 मार्च को अपने - अपने शेयर का समायोजन करेंगी ।

मगर सरकारें राज्य के पेंशनरों को मंहगाई राहत देने के लिए पिछले 23 साल से राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 और 6वीं अनुसूची में दिए गए प्रावधानों की गलत  व्याख्या कर दुरुपयोग कर रही है।

एकबार फिर से छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 की आड़ में झाड़ काटते हुए पेंशनर्स को आधी - अधूरी मंहगाई राहत दिये जाने का आदेश निकाल कर पेंशनर्स को आधा पेट भूखा रहने को विवश कर दिया है।  ज्ञातव्य हो कि केन्द्रीय और राज्य कर्मचारियों को वर्तमान में 42 फीसदी मंहगाई भत्ता दिया जा रहा है जबकि दोनों राज्यों की सरकारें अपने पेंशनरों को 9 फीसदी कम याने 33 फीसदी मंहगाई राहत दे रही हैं ।

पेंशनर्स लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी केंद्र और राज्य कर्मचारियों के बराबर 42 फीसदी मंहगाई राहत दी जाय मगर छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की कांग्रेसी और भाजपाई सरकार लगातार पेंशनर्स की मांग को अनसुना करती चली आ रही हैं । मध्यप्रदेश सरकार तो छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति ना मिलने का राग अलापती चली आ रही है ।

पेंशनरों को उम्मीद थी कि छत्तीसगढ़ी कांग्रेसी सरकार शायद पेंशनर्स हितैषी होगी और 42 फीसदी मंहगाई राहत देने के लिए बकाया 9 फीसदी मंहगाई राहत दिये जाने का आदेश पारित करेगी मगर नहीं छत्तीसगढ़ी कांग्रेसी सरकार ने भी जुल्मी नीति अपनाते हुए केवल 5 फीसदी मंहगाई राहत दिये जाने का आदेश जारी किया है वह भी 01 जुलाई 2022/01 जनवरी 2023 से देने के बजाय 01 जुलाई 2023 से।

उसी तर्ज पर मध्यप्रदेश की भाजपाई सरकार ने भी अपने पेंशनर्स को 5 फीसदी मंहगाई राहत देने का आदेश जारी कर दिया है। अब पेंशनरों को 38 फीसदी मंहगाई राहत मिलने लगेगी। दोनों प्रदेश के पेंशनर्स आज भी केन्द्रीय और राज्य कर्मचारियों से 4 फीसदी कम मंहगाई राहत पाने को अभिशप्त हैं।

सरकारें जानती हैं कि पेंशनरों के आन्दोलन करने से उनकी सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। हकीकत यह है कि सरकारों की नजर में पेंशनर्स की अहमियत बोझ के समान ही है। वह तो चाहती है कि पेंशनर्स जितने कम होंगे उन्हें उतनी कम पेंशन देनी पड़गी।

ऐन विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े होकर कांग्रेस और भाजपा सरकारों द्वारा की जा रही पेंशनर्स की उपेक्षा यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वे पेंशनर्स को बोझ मान कर चल रही हैं। फिर भी पेंशनर्स की सरकार से मांग है कि जल्द ही बकाया 4 फीसदी मंहगाई राहत दिये जाने का आदेश बिना कोई हीलाहवाली किए जारी किया जाय।

 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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