गुलशन में खार भी हैं गुलेतर के साथ - साथ, जयचंद का नाम भी है जाफर के साथ - साथ बेशक दो-चार-पांच को तुम वफादार मत कहो लेकिन तमाम कौम को भी गद्दार मत कहो

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं)

सुशील नाथ्याल, सैय्यद आदिल हुसैन शाह, हेमंत जोशी, विजय नरवाल, अतुल श्रीकांत मोनी, नीरज, बितन अधिकारी, सुदीप न्यूपावे, शुभम द्विवेदी, प्रशांत कुमार सत्यपथी, मनीष रंजन, एन रामचंद्रन, संजय लक्ष्मण लाली, दिनेश अग्रवाल, समीर गुहार, दिलीप दलाली, जे संचांद्रमोली, मधुसूदन, सोमी सेट्ठी, संतोष जघडा, कस्तूबा गंवोते, भारत भूषण, मंजूनाथ राव, सुमित परमार, यतेश परमार, तगेहलिंग, शैलेष भाई, हिम्मत भाई ये वो नाम है जिन्हें आधिकारिक रूप से जारी किया गया है जो पहलगाम में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए हैं। ये लोग हिमाचल प्रदेश, उडीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, चंडीगढ़ और नेपाल के रहने वाले थे। इनमें नौसेना, आईबी के अधिकारी भी थे जो दक्षिण कश्मीर के पहलगाम (छोटा स्विट्जरलैंड) की खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने आये थे। उन्हें क्या मालूम था कि वे जिन हरी वादियों का नजारा कर रहे हैं आतंकवादी उन्हें उनके ही लहू से लाल कर देंगे।

आतंकवादियों ने एकसाथ इतने परिवारों और राज्यों में अपनी दहशत पहुंचाई। पूरा देश इन्हें अपनी प्रार्थनाओं और यादों में शामिल कर रहा है। आतंकवाद के हमलों ने पुराने घावों को भी हरा कर दिया है। यह दुखद और दुर्दांत हादसे को 3 - 4 आतंकवादियों ने 22 अप्रैल की दोपहर को अंजाम दिया जब वहां तकरीबन दो हजार सैलानियों की मौजूदगी थी। पहली नजर में तो यही सवाल उठता है कि जहां पर इतने पर्यटक मौजूद थे वहां सुरक्षा व्यवस्था थी या नहीं? अगर सुरक्षा थी तो आतंकवादियों पर जबाबी कार्रवाई क्यों नहीं की गई? उन्हें ढेर क्यों नहीं किया गया? एक भी आतंकवादी न तो ढेर हुआ न ही पकडा गया। आतंकवादी अपना काम कर इत्मिनान से फरार हो गये। लगता है कि आतंकवादी निश्चिंत थे कि यहां पर कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है और ना ही कोई उनको पकड़ने वाला है। सवाल तो यह भी है कि 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जम्मू दौरा था तो क्या सुरक्षा की व्यवस्था की कवायद नहीं की गई होगी, खुफिया तंत्र को अलर्ट नहीं किया गया होगा। किसी को पता नहीं चला कि इस तरह की कोई घटना हो सकती है। केन्द्र सरकार तो इतिहास से भी सबक लेने की चूक कर गई कि जब भी किसी अमरीकी सेलेब्रिटी का भारत आना होता है संयोग कहें या प्रयोग कश्मीर में आतंकी हमला होता है। जिस दिन पहलगाम में आतंकी वारदात हुई अमरीकी उपराष्ट्रपति जे डी वेंस जयपुर में थे।

पीएम मोदी अमरीका को तो बहुत गुनगुनाते रहते हैं तो क्या उन्हें पता नहीं होगा कि अमरीका अपने नागरिकों को एडवाइजरी भी जारी करता रहता है तो क्या पहलगाम में आये सैलानियों के लिए भारत सरकार की ओर से कोई एडवाइजरी जारी की गई थी क्या। सारे सवालों का जवाब नहीं में ही है। तो यह सीधे-सीधे सरकार का फेलुअर है, गृह मंत्रालय का फेलुअर है जिसके अधीन सारे खुफिया तंत्र आते हैं यानी सीधे तौर पर यह पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का फेलुअर है। इन सारी मौतों के जिम्मेदार पीए मोदी और एचएम शाह हैं।

पहलगाम हमले के मद्देनजर 2014 से मोदी कालखंड में हुई आतंकवादी घटनाओं पर एक सरसरी निगाह डालना जरूरी है। 2014 में कठुआ, बांद्रा लेंडमाइन, उरी अटैक 2015 में कठुआ पुलिस स्टेशन, सोपाइन पुलिस स्टेशन, 2016 में पठानकोट एयरबेस, बारामुला मिलिट्री काफिले, फिर से उरी हमला, 2017 में सोपाइन पैट्रोलिंग पार्टी, कुलगाम बैंक वेन, अनंतनाग मिलिट्री काफिला, अमरनाथ यात्रा, 2018 में सोपोर में आईईडी ब्लास्ट, सुनजवन मिलिट्री स्टेशन, कुलगाम लावू विलेज अटैक, 2019 में पुलवामा अटैक, अनंतनाग सिक्योरिटी फोर्स काफिले पर हमला, बेनगाली लेवर्स पर हमला, 2020 में सीआरपीएफ पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला, 2021 में श्रीनगर पोलिस व्हीकल, 2022 में राजौरी, 2023 में आर्मी व्हीकल, 2024 में राइसी एवं कठुआ आर्मी पर हमला इसके अलावा कंधार आईसी 814 विमान अपहरण तथा कश्मीरी पंडितों का पलायन - ये सारी घटनाएं 56 इंची सीने वाले के कार्यकाल में घटित हुई हैं। इन घटनाओं के मद्देनजर इस बात का जिक्र करना प्रासंगिक होगा जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री मरहूम मनमोहन सिंह (दिल्ली सरकार) से पांच सवाल पूछे थे और वही सवाल आज भी जब प्रधानमंत्री के किरदार खुद नरेन्द्र मोदी हो चुके हैं (दिल्ली सरकार) से पूछे जा रहे हैं - - पहला सवाल - ये जो आतंकवादी हैं, ये जो नक्सलवादी हैं उनके पास शस्त्र और बारूद कहां से आता है ? ये तो विदेश की धरती से आता है और सीमायें सम्पूर्ण रूप से आपके कब्जे में है, सीमा सुरक्षा बल आपके कब्जे में है। दूसरा सवाल - आतंकवादियों के पास धन आता है हवाले से। पूरा का पूरा मनी ट्रांजेक्शन का कारोबार भारत सरकार के कब्जे में है, आरबीआई के अंडर में है, बैंकों के माध्यम से होता है। क्या आप प्रधानमंत्री इतनी निगरानी नहीं रख सकते हैं कि ये जो धन विदेश से आकर आतंकवादियों के पास जाता है। आपके हाथ में है आप उसे क्यों नहीं रोकते हैं ? तीसरा सवाल - विदेशों से घुसपैठिए आते हैं। घुसपैठिए आतंकवादियों के रूप में आते हैं। आतंकवादी घटनाएं करते हैं, भाग जाते हैं। प्रधानमंत्री मुझे बताइए सीमाएं आपके हाथ में है, कोस्टल सिक्योरिटी आपके हाथ में है, बीएसएफ, सेना सब आपके हाथ में है, नेवी आपके हाथ में है। विदेशों से घुसपैठिए कैसे घुस जाते हैं ? चौथा सवाल - सारा कम्युनिकेशन भारत सरकार के अंडर में है। कोई भी अगर टेलिफ़ोन पर बात करता है, ई मेल भेजता है, कोई भी कम्युनिकेशन करता है भारत सरकार उसे इंटरेप्ड कर सकती है, इंटरेप्ड करके जानकारियां पा सकती है कि आतंकवादी गतिविधि और कौन सा कम्युनिकेशन चल रहा है और आप उसे रोक सकते हो। मैं पूछना चाहता हूं प्रधानमंत्री जी आपने क्या किया ? पांचवां सवाल - विदेशों में जो आतंकवादी भाग चुके हैं, जो लोग विदेश में बैठ करके हिन्दुस्तान में आतंकवादी घटनाएं कर रहे हैं उनको प्रत्यर्पण के द्वारा हिन्दुस्तान लाने का हमें अधिकार होता है। आपकी विदेश नीति की जो ताकत है। एकबार इन पांचों चीजों को करके दिखाईये। आतंकवाद जड़ मूल से उखड़ जायेगा। राज्यों के अधिकार हथिया करके राजनीति करने के खेल छोड़ दीजिए। दिल्ली की सल्तनत के पास मेरे इन सवालों के जवाब नहीं हैं।

माना कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास न तो विदेश नीति का ज्ञान था न ही आतंकवाद कैसे पनपता है इसकी समझ तथा न ही आतंकवाद से लड़ने की इच्छा शक्ति। मगर 2014 से प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी के पास तो आतंकवाद की पीएचडी है और आतंकवाद को लेकर उनकी जीरो टालरेंस की नीति। उन्हें पता है कि आतंकवादी कहां से आते हैं,उन्हें असलहा कहां से मिलते हैं तो फिर 2014 से लगातार आतंकवादी घटनाएं क्यों घटित हो रही हैं.? पुलवामा, पठानकोट एयरबेस पर हमला, कश्मीरी पंडितों की हत्या । आजतक न कोई जांच हुई न ही किसी की जबाबदेही तय की गई। पुलवामा हमले को लेकर तो तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने केन्द्रीय सत्ता पर खुलकर आरोप लगाए हैं। वे तो सीधे तौर पर पीएम नरेन्द्र मोदी को टारगेट करते हुए कहते हैं कि जो पुलवामा हमला करा सकता है वह सत्ता में रहने के लिए कुछ भी करा सकता है। इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुप्पी मलिक के आरोपों की स्वीकारोक्ति ही दर्शाती है। यही घटना अगर यूपीए के शासन काल में हुई होती तो अभी तक तथाकथित पार्टियां और संगठन इस्तीफे के लिए विधवा विलाप कर रहे होते और बिकाऊ मीडिया छाती पीट रहा होता लेकिन मोदी शाह से सवाल करने उनसे इस्तीफा मांगने के बजाय जब  पठानकोट हमले को लेकर सारी विपक्षी पार्टियों ने दिल्ली सरकार के साथ खड़े होने का ऐलान किया है इसके बाद भी बीजेपी की टोल आर्मी विपक्षी नेताओं और उनकी राजनीति पर तथा मोदी सरकार के आलोचकों पर निशाना साध रही है।

पहलगाम में मारे गए दो दर्जन से ज्यादा सैलानियों की मौत और इतने ही सैलानियों के हताहत होने के बाद सरकार की ओर से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एकबार फिर वही घिसा पिटा बयान दिया है जिसे हर आतंकवादी घटना के बाद औपचारिकतावश जारी किया जाता है और उस बयान को सुनते हुए देशवासियों के कान पक गये हैं। मैं भारत के दृढ़ संकल्प को दोहराना चाहूंगा टेररिज्म के खिलाफ हमारी जीरो टॉलरेंस की पालिसी है। भारत का एक - एक नागरिक इस कायरतापूर्ण हरकत के खिलाफ एकजुट है। मैं इस मंच से देशवासियों को आश्वस्त करता हूं घटना के मद्देनजर भारत सरकार वो हर कदम उठायेगी जो जरूरी और उपयुक्त होगा और हम सिर्फ उन लोगों तक ही नहीं पहुंचेंगे जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है। हम उन तक भी पहुंचेंगे जिन्होंने पर्दे के पीछे बैठकर हिन्दुस्तान की सरजमीं पर ऐसी नापाक हरकतों की साजिश रची है। पत्रकार राहुल पंड़िता ने एक्स पर लिखा है कि इस नाकामी को कोई भी कुतर्क और बकवास से नहीं छुपा सकता। सुरक्षा से जुड़ी हर तरह की ऐजेंसियों की ये नाकामी है। यह सभी ऐजेंसियों की लापरवाही का नतीजा है। (IT IS A COLOSSAL FAILURE OF EVERY AGENCY INVALVED YOU WERE CAUGHT WITH YOUR PANTS DOWN ALL AGENCIES. NO BULLS HIT IS ADEQUATE TO COVER THAT FAILURE)।

अनंतनाग के रहने वाले सैय्यद आदिल हुसैन शाह जो पहलगाम में सैलानियों को घुड़सवारी करवा कर अपना परिवार पालते थे उनकी हत्या पर दैनिक जागरण लिखता है कि सैय्यद हुसैन ने आतंकवादियों को हमला करने से रोकने की कोशिश की जब वो नहीं माने तो वह एक आतंकवादी से भिड़ गया और उसकी राइफल छीनने की कोशिश की और उसे अपनी जान गवांनी पड़ी। दैनिक भास्कर लिखता है कि सैय्यद हुसैन अपनी जान बचा सकता था, भाग सकता था लेकिन उसने भागने की बजाय आतंकवादियों से डटकर मुकाबला किया। उसकी बहादुरी और बलिदान की वजह से कई लोगों की जान बच गई। अगर वह ऐसा नहीं करता तो मरने वालों की तादाद कहीं ज्यादा होती। एक कश्मीरी व्यापारी नजाकत अली ने 4 परिवारों के 11 लोगों की जान बचाई। आतंकी हमले में लगभग दो दर्जन सैलानी घायल भी हुए। हताहतों और दहशतजदा लोगों को बचाने के लिए वही मुस्लिम परिवार सामने आये जिसे 7x 24 तथाकथित धर्म विशेष से जुड़े हुए संगठनों द्वारा कोसा जाता है।

                   _चलते - चलते_

देश को शर्मसार करने वाली एक घटना का विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें गुजरात के अहमदाबाद में ईस्टर मना रहे ईसाइयों के कार्यक्रम स्थल पर विश्व हिन्दू परिषद तथा बजरंग दल के लाठी डंडों से लैस असमाजिक तत्वों ने घुस कर जमकर बबाल काटा और रिपोर्ट करने पर पुलिस ने भी वही किया जो आम तौर पर सत्ता पार्टी के लोगों के सामने घुटनाटेक पुलिस करती है।

_गुलशन में खार भी हैं गुलेतर के साथ - साथ_

_जयचंद का नाम भी है जाफर के साथ - साथ_

_बेशक दो-चार-पांच को तुम वफादार मत कहो_

_लेकिन तमाम कौम को भी गद्दार मत कहो_

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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